आपदा एक दुर्भाग्यपूर्ण सच्चाई है जिससे हर राज्य कमोबेश प्रभावित होता रहता है। झारखण्ड आपदा प्रबंधन प्राधिकार, राज्य स्तरीय सरकारी तंत्र है जो झारखण्ड में आपदाओं के दौरान, तैयारी, सहायता, बचाव एवं पुनर्वास के लिए अधिकृत है। केंद्र में आपदा प्रबंधन अधिनियम २००५ पास होने से पहले ऐसे विशिष्ट सरकारी एजेंसी नहीं हुआ करते थे।
झारखंड सरकार की राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के तहत सभी 24 जिलों में जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण गठित हैं। जो आपदाओं के जोखिम को कम करने के लिए तैयारी, प्रतिक्रिया, शमन, राहत, बचाव और पुनर्वास रणनीतियों पर कार्य करते हैं। इसके अलावा राज्य कार्यकारी समिति, राज्य के आपदा प्रबंधन के लिए रणनीति बनाती रहती है और जिले स्तर की इकाइयों के साथ समन्वय में काम करती है।
झारखंड एक पहाड़ी इलाका होने के चलते बाढ़ एवं भूकंप जैसी आपदाओं से तो सुरक्षित है लेकिन सूखे से ज्यादातर प्रभावित रहता है। जनसँख्या का 75% कृषि निर्भर होने के चलते सूखे की समस्या राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए चिंता सबब बना जाता है। झारखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार की भूमिका सूखे एवं अन्य ऐसी आपदाओं में महत्त्वपूर्ण रही है और जनसामान्य तक इसकी योजनाओं का लाभ सुनिश्चित किया गया है। राज्य स्तर पर इसके अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं एवं जिला स्तर पर जिला उपायुक्त।
इस पोस्ट में हम झारखण्ड आपदा प्रबंधन प्राधिकार की भूमिका पर एक दृष्टिपात करेंगे।
आपदा प्रबंधन की संकल्पना
आपदा या अंग्रेजी में डिजास्टर (disaster) कोई ऐसा प्रकोप हो सकता है जो एक साथ विशाल जनसँख्या को प्रभावित करता हो। इस दृष्टिकोण से जान माल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के सरकारों की जिम्मेदारियां बढ़ जाती है। आपदा प्रबंधन प्राधिकार का गठन इसी उद्देश्य से किया जाता है। अमूमन, जिले स्तर पर उपायुक्त, राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री या फिर राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री आपदा प्रबंधन प्राधिकार के अध्यक्ष होते हैं।
भारत भौगोलिक एवं जलवायु विविध प्रदेश होने के चलते कई तरह की आपदाओं का शिकार होता रहा है जिसमे सुनामी, भूस्खलन, चक्रवाती तूफान, बढ़, सूखा, भूकंप इत्यादि शामिल है। इसलिए आपदा प्रबंधन की संकल्पना का भारत में जन्म हुआ और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 पारित हुआ।
आपदा प्रबंधन आपदा को रोक तो नहीं सकती परन्तु इसके घटित होने के बाद प्रभाव को काम कर सकती है। अधिनियम की धारा 2 (d) में “आपदा” को परिभाषित किया गया है, जिसके अंतर्गत आपदा का अर्थ प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न किसी भी क्षेत्र में “तबाही, दुर्घटना, आपदा या गंभीर घटना” से है।
सन २०२०- २१ में जो कोविड-१९ का महाप्रकोप आया उसमें महामारी का शमन और प्रबंधन सब कुछ आपदा प्रबंधन अधिनियम २००५ के तहत ही हुआ। पूरी प्रक्रिया में केंद्र, राज्य और जिले स्तर के प्राधिकार और उसके अंदर बनी समितियों ने बड़ा महत्वपूर्ण योगदान निभाया।
THE DISASTER MANAGEMENT ACT, 2005 का सेक्शन 3, 14 एवं 25 क्रमशः National Disaster Management Authority, State Disaster Management Authority, और District Disaster Management Authority गठित करने का प्रावधान करता है। यह कानून, प्रत्येक प्राधिकार के लिए शक्तियों तथा जवाबदेही का भी निर्धारण करता है।
झारखण्ड में विगत वर्षो में आपदाएं
विगत वर्षों में झारखण्ड में कई आपदाएं घटित हुई है जिनका संक्षिप्त विवरण एवं राज्य प्रबंधन प्राधिकार की भूमिका पर दृष्टिपात करना प्रासंगिक रहेगा
त्रिकूट केबल कार दुर्घटना 2022
इस दुर्घटना में त्रिकूट पर्वत, देवघर में कई सैलानी हवा में झूलते हुवे रोप वे कार में २ दिन तक फंसे रह गए। ३ मौतें दर्ज की गयीं किन्तु आपदा प्रबन्धन प्राधिकार के प्रयसों से ३८ लोगो को सुरक्षित निकल लिया गय। राज्य आपदा प्रबंधन ने हेलीकाप्टर भेजे और NDRF के जवानो ने साहसिक प्रदर्शन करते हुवे अधिकांश लोगो को रेस्क्यू कर लिया.
KDH प्रोजेक्ट आग 2022
झारखण्ड जहाँ कोयले जैसे खनिजों सम्पन्न है, वही कोयले जुडी कई विपदाएं भी हैं। माइंस /खदानों में आग ऐसी ही एक विपदा है जिसे झारखंड के हज़ारों लोग प्रभावित होते रहते हैं.
सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड के करनपुरा देवलखंड हेसालोंग (KDH ) परियोजना के उत्तरी करनपुरा क्षेत्र के आसपास स्थित झारखंड के करकटा गांव में एक बंद भूमिगत कोयला खदान में फ़रवरी 2022 में आग लगी जिसमे लगभग २००० लोगो के विस्थापित होने का खतरा बन गया था। यद्यपि इसपर काबू पा लिया गया था लेकिन सैकड़ो लोगो को बहुत असुविधा हु।
साहिबगंज बाढ़ आपदा 2021
जुलाई अगस्त २०२१ में साहिबगंज में बढ़ का प्रकोप कम से कम २१००० लोगों को घर से बेघर कर दिया और २लख के आस पास की जनसंख्या किसी न किसी रूप से प्रभावित हुयी। चूँकि मुख्यमंत्री आपदा प्रबंधन के अध्यक्ष होते हैं , उन्होंने खुद से ही इस आपदा का हवाई सर्वे किया एवं जिला स्तर के अध्यक्ष जिला उपायुक्त ने ंडरफ की कई टुकड़ियां राहत एवं बचाव कार्य के लिए तैनात किया।
आपदा के सामान्य होने में कई साप्ताह लग गये लेकिन राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार ने समयोचित फैसले लेते हुए जिला स्तरीय प्रबंधन को आवश्यक निर्देश दिए और लोगों को जरुरी सहायता प्रदान की गयी। बाढ़ से विस्थापित लोगों को पुनर्वास कराने में आपदा प्रबंधन में निभाई
तड़ित बिजली आपदा 2020- 21
वैसे तो IMD के अनुसार झारखण्ड देश के उन छह राज्यों में शुमार है जहाँ सबसे ज्यादा तड़ित से मौते होती हैं, 2020-21 में बिजली गिरने की 440,000 घटनाएं दर्ज की गयी और 322 मौते हुई हैं।
CROPC (Climate Resilient Observing System Promotion Council) के एक सर्वे के अनुसार झारखण्ड के कुल मौतों का 33% अकेले तड़ित बिजली के कारन द्वारा होता है।
स्कूलों और तड़ित संभावित भवनों पर तड़ित चालक लगवाने के साथ साथ झारखण्ड सरकार एडवाइजरी जारी करती है इस आपदा से बचने के लिए। चार लाख रुपये प्रति मृत्यु अनुदान और घर ध्वस्त होने पर भी एक लाख रुपये दिए जाते हैं लेकिन तड़ित ग्रस्त वयक्ति को अविलम्ब चिकित्सकीय सुविधा जयादा जरुरी जान पड़ती है। दुर्भग्य से ७५% तड़ित घटनाएं गावों में होती हैं जहाँ चिकित्स्कीय सहायता उपलब्ध नहीं हैं। झारखण्डआपदा प्रबंधन प्राधिकार को इस क्षेत्र में ज्यादा कारगर कदम उठाने की जरुरी है।
झारखण्ड के फारेस्ट फायर डिजास्टर्स (Updated)
अप्रैल 2022 में गया चौपारण क्षेत्र के जंगलों में भीषण आग लगी जिसमे काम से काम पांच एकड़ की जंगल सम्पदा नाश्ता हो गयी। आग को काबू करते हुवे अग्निशमान दस्ते के चार जवान बुरी तरह घायल हो गए।
जंगल हमारे लिए फेफड़ो जैसे हैं जो हमारे लिए ताज़ी और जीवन दायिनी हवा बनाते है। झारखण्ड के जंगलो में आग की आपदा एक डैम से सामान्य है और इसके कई कारन है। हालाँकि अन्दर ग्राउंड फायर जो कोयले की खदानों से शुरू होते हैं, मुख्य हैं। मानवजनित आग की घटनाएं भी इसमें शामिल हैं जिसमे आसपास के व्यवसाईयों की लालच शामिल हैं।
यह आपदा इतनी बड़ी है कि कई सप्ताह तक आसपास के लोग शुद्ध हवा के लिए तरस जाते हैं। केवल एक सप्ताह के अंदर सॅटॅलाइट की तस्वीरो ने मार्च 2021 में कुछ 5000 जंगल-आग की घटनाओ को झारखण्ड में रिपोर्ट किया था।
झारखण्ड में यह समस्या बड़ी है और आग की घटनाओ की संख्या के हिसाब से तीसरे नंबर पर आता है। ओडिशा पहले नंबर पर है। यह स्पष्ट नहीं है कि आपदा प्रबंधन किस प्रकार कार्य कर रही है।
जीतपुर कोयला खदान आपदा 2013
इस दुर्घटना में 67 खनिक अक्टूबर माह में 7 घंटे के लिए सैल्स्त्रो की सवामित्व वाली जीतपुर कोयला खदान में बिजली काट जाने से फंस गए थे। खदान इंजीनियर्स की सहायता से आपदा प्रबंधन कर्मियों ने सबको सुरक्षित बचा लिया.
भातडीह -नागदा माइंस आपदा 2006
यह दुर्घटना बीसी सी एल की स्वामित्व वाली एक माइंस से सम्बंधित है जो 2006 में घटित हुई। खदान के अंदर एक विस्फोट इसका कारन बना जिसमे कार्बोन डाइऑक्साइड के चलते 64 खनिकों की जान चली गयी। घटना इतनी तीव्रता से हुई की आपदा प्रबंधन कुछ नहीं कर पायी इन खनिकों के लिए। वस्तुतः उस समय आपदा प्रबन्धन प्राधिकार वर्तमान सवरूप में अस्तित्व में था ही नहीं। राज्य के गृह विभाग को ही ऐसे अप्रत्याशित घटनाओ को देखना पड़ता था और जो प्रशसनिक मशीनरी थी वह उतनी कारगर नहीं थी।
ग़ज़लीटांड कोयला खदान आपदा 1995
अक्टूबर 1995 में BCCL के स्वामित्व वाली ग़ज़लिटांड के एक कोयला खदान में कतरी नदी का पानी घुस जाने से ६४ खनिक मौत के गाल में चले गए। सारे खनिक रात्रि शिफ्ट में काम कर रहे थे किअचानक से नदी ने अपनी धारा बदल दी और पानी इस माइंस में घुस गया। इस समय आपदा प्रबंधन का जिम्मा Ministry of Agriculture & Cooperation के पास था और इसमें कोई आश्चर्य नहीं, कि कुछ भी सार्थक हो पाया हो बचाव एवं राहत के लिए।
चासनाला माइनिंग डिजास्टर | Chasnala Mining Disaster 1975
चासनाला माइनिंग डिजास्टर भारत के भयानक एवं घातक आपदाओं में से एक है। यह भयानक दुर्घटना 27 December 1975 को धनबाद जिले के चासनाला कोयला खदान में हुई थी जिसमे 375 खनिक मरे गए थे और पहला शव दुर्घटना के 26 दिन बाद मिल पाया था। यह वह दौर था जब आपदा प्रबंधन प्राधिकार अस्तित्व में था ही नही।
असल में जिस माइंस में खनिक काम कर रहे थे उसमे एक विस्फोट हुवा और करीब के एक और माइन्स से काफी मात्रा में पानी घुस आया। करीब का माइंस काफी समय पहले ही परित्यक्त कर दिया गया था जो पानी से भरा हुआ था। विस्फोट के चलते दुर्घटना वाली माइन्स का दीवाल अचानक से कमजोर पड़ गया और दूसरे तरफ से पानी का दबाव सहन नहीं कर पाया।
धोरी कोलियरी आग 1965
धोरी कोलियरी आग- धनबाद के धोरी कोलियरी जो कि बेरमो के पास स्थित है, उसमे 28 मई 1965 को एक विस्फोट के कारण आग लग गयी जिससे 268 खनिक मारे गए. इस दुर्घटना का समय था जबआपदा प्रबंधन प्राधिकार केअस्तित्व की बात तो रहने दीजिये, आपदा प्रबंधन जैसी कोई संकल्पना भी नहीं थी। दरअसलUNO जैसे अंतराष्ट्रीय मंचो में भी इस संकल्पना को लेकर जागृति काफी देर से, नब्बे के दशक में ही आयी.
झारखंड में जिलावार आपदा का स्वरुप
क्रम सं | आपदा का स्वरुप | प्रभावित जिले |
1. | सूखा | लगभग सभी जिले परन्तु गढ़वा एवं पलामू दीर्घकाल से सूखा प्रभावित क्षेत्र रहे हैं। |
2. | बिजली गिरना | पलामू, रांची , कोडरमा, गिरिडीह, चतरा, हज़ारीबाग़, लोहरदगा, दुमका,लातेहार |
3. | जंगल की आग | गढ़वा, पलामू, लातेहार, चतरा, हजारीबाग, पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम, सराईकेला सिमडेगा, गुमला |
4. | बाढ़ | साहिबगंज, गोड्डा, पाकुर, गढ़वा, पलामू, चतरा, सिंघभूम, रामगढ, धनबाद, गुमला, सिमडेगा |
5. | खदान सम्बंधित | धनबाद, बोकारो, कोडरमा, पलामू, गढ़वा, लातेहार, लोहरदगा, सिंघभूम द्वय, सराईकेला, गिरिडीह |
6 | इंडस्ट्रियल | सिंघभूम द्वय, रांची, धनबाद, बोकारो, रामगढ, हज़ारीबाग, सराईकेला-खरसावां, गिरिडीह |
7. | साइक्लोन | सिंघभूम द्वय, सराईकेला-खरसावां, रांची, धनबाद, बोकारो, हज़ारीबाग, सिमडेगा |
8. | कोल्ड वेव | लगभग सभी 24 जिले |
9. | भूकंप | Zone-IV गोड्डा , साहिबगंज |
Zone III गोड्डा,साहिबगंज, गढ़वा, पलामू, चतरा, दुमका, गिरिडीह, बोकारो, धनबाद, गोड्डा | ||
Zone II लोहरदगा, रांची, रामगढ, खूंटी, गुमला, सिंघभूम द्वय |
झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन इकाई एवं कार्य प्रणाली
राज्य आपदा प्रबंधन कई जिला स्तरीय प्रबन्धन इकाइयों में विभक्त है और आपसी तालमेल से हर आपदा से मोर्चा लेती है। इसकी कार्य प्रणाली को समझना बिलकुल प्रासंगिक है।
राज्य आपदा प्रबंधन योजना
- झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन विभाग अक्टूबर 2004 में बना (वर्तमान में गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन एक मंत्रालय के रूप में कार्य करता है।) . जो आपदा के लिए नीति एवं योजना तैयार करता है और आपदा प्रबंधन प्राधिकार और आपदा प्रबंधन समिति के माध्यम से आपदा नीतियों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करता है।
- आपदा प्रबंधन विभाग ने एक इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर की स्थापना की है और यह राज्य के सभी 24 जिलों में काम करता है।
- ऑपरेशन सेंटर को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के सहयोग से वी – सेट उपग्रह से जोड़ने की योजना पर काम चल रहा है।
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झारखण्ड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (JSDMA)
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झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन- निष्कर्ष
राज्य की आपदा प्रबंधन ने विगत कई आपदाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है
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वस्तुतः 23 दिसंबर, 2005 को, आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 का पारित होना एक निर्णायक कदम था। जिसके मुताबिक प्रधान मंत्री, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की, मुख्यमंत्रीगण राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA) की और जिला मजिस्ट्रेट्स जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) की अध्यक्षता करने का प्रावधान है।
आपदा प्रबंधन के लिए यह व्यवस्था एक समग्र और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने जैसा है।
पूर्व के राहत-केंद्रित प्रतिक्रिया से भिन्न यह एक सक्रिय रोकथाम, शमन और तैयारी-संचालित दृष्टिकोण है। जिसका उद्देश्य विकास का संरक्षण और जीवन, आजीविका और संपत्ति के नुकसान को कम करने का है।
झारखंड राज्य आपदा प्रबंधन: FAQ
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Ans: CCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCCC
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Ans: फर्स्ट रेस्पॉन्डर वो लोग होते हैं जो सबसे पहले रेस्क्यू एंड रिलीफ के लिए सामने आते है। पुलिस ऑफिसर्स, NDRF (पारा मिलिट्री ) फायर फाइटर्स और आपातकालीन मेडिकल टेक्निशियन्स इस टीम में होते हैं