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कान्ति और उसकी ब्लॉग्गिंग टीम, सोच १०१  डॉट कॉम पर आने हेतु आपका आभार व्यक्त करती है। सोच १०१ डॉट कॉम ब्लॉग मेरी एक पूर्व नियोजित योजना का हिस्सा है, जिसे मैंने वर्ष २०२० की NET- JRF उत्तीर्ण करने के पश्चात अमल में लाया है। आशा है, आप हमारे इस ब्लॉग से जुड़कर अवश्य लाभान्वित होंगे। ब्लॉग की विषय- वस्तु क्या है, यह तो इस ब्लॉग के आमुख पृष्ठ से पता हो जाता है, उसे बताने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं जान पड़ती ।

किन्तु, मेरे लिए एक सीमित के दायरे से निकलकर राष्ट्र निर्माण से जुड़े एक करियर की पहली सीढ़ी का चढ़ना कोई संयोग-मात्र नहीं है, बल्कि इसके पीछे परिवार जनों की महती भूमिका है। अगर मैं यह कहूँ कि करियर चयन और फिर JRF में चयनित होने का सीधा सम्बन्ध एक यात्रा काल में प्राप्त विशिष्ट मार्गदर्शन का है तो बिल्कुल उपयुक्त होगा। अतः उस यात्रा काल के सम्पूर्ण विवरण के बिना ब्लॉग का यह पृष्ठ कदाचित् अधूरा रहेगा। पूरा वृतान्त मैंने उस यात्रा के ठीक पश्चात लिख रखा था जिसे मैं शब्दशः पुनः अंकित कर रही हूँ। आपको अगर इससे कोई प्रेरणा और लाभ मिले तो अत्यंत ख़ुशी होगी ।

प्रथम सप्ताह, मार्च २०१९, यह वह समय था जब मैं PG अंतिम सेमेस्टर का exam लिखने वाली थी और exam देने से पहले ही एक अच्छे करियर की टोह लेने में चिंतित हुए जा रही थी। सो, मैं मुम्बई आ गयी अपने बड़े भाई एवं भाभी से मिलकर भावी करियर योजना को बनाने के लिए। यह यात्रा मेरे जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना जैसी है, जिसके बाद से मेरी जिंदगी एक नए और निर्धारित मार्ग पर अग्रसर होने के लिए तैयार हुई।

मैंने वास्तविक जिंदगी के कई महत्वपूर्ण एवं दिग्भ्रमित करने वाले सवालों के उत्तर जाने। मुझे पहली बार पता चला कि करियर और जीवन को देखने का पटल कितना बड़ा हो सकता है ! मुझे यह भी पता चला कि मैं अपनी योग्यता को कितना कम आंक रही थी, जबकि मुझमे एक बड़े व्यक्तित्व की सारी संभावनाएँ मौजूद थीं।

मुंबई आने से पूर्व मेरे मन में कई सवाल उठ रहे थे, मसलन: क्या मैं एक खूबसूरत जिंदगी की शुरुआत कर पाऊँगी? क्या मैं एक नए हौसले के साथ आनेवाली मुश्किलों का सामना कर पाऊँगी? क्या मै एकबार सबको भरोसा दिला पाऊँगी कि फ़िलहाल केवल अपने करियर को लेकर गंभीर हूँ और करियर ही मेरी उच्चतम प्राथमिकता एवं महत्वपूर्ण उद्देश्य है? इत्यादि, इत्यादि।

मुंबई भारत का सबसे बड़ा शहर है और इसे मायानगरी भी कहते हैं। ग्रामीण परिवेश से आने वाले ज्यादातर लोगों का एक सपना होता है कि एक बार मुंबई जाया जाय। इस दृष्टि से मैं एक महत्वपूर्ण यात्रा पर निकल तो चुकी थी लेकिन, मुझे यह बात खाए जा रही थी कि मैं सच में इस यात्रा का वास्तविक आनंद ले पाऊँगी या नहीं। मै केवल अपने सवालो के सही जवाब पाने में ही व्यस्त रहूँगी या फिर उनके समुचित हल चुनकर कुछ आनंद भरे पल भी परिवार वालो के साथ गुजार पाऊँगी।

सौभाग्य से मुझे मेरे सारे उलझे सवालो के उत्तर तो मिले ही, साथ ही साथ असली जिंदगी की सही रुपरेखा को जान पायी। अगर मैं सारे संस्मरण को कुछ शब्दों में कहना चाहूँ तो यह कहना उचित होगा की मुझे एक नयी जिंदगी जीने की प्रेरणा, सीख और रास्ते सब कुछ मिले। अब मैं बेहद खुश हूँ क्योंकि मुझे जिंदगी जीने का नया नजरिया मिला, कुछ कर गुजरने का जज्बा मिला और अपने एक नए मैं से मिली जिससे अब तक अनजान थी। मेरे संपूर्ण अनुभव कुछ इस प्रकार हैं:

1 ) मैं यहाँ आकर अपने व्यक्तित्व को निखारने का तरीका समझी और कई गुर सीखे व्यक्तित्व निर्माण के। व्यक्तित्व निर्माण लिए क्या जरुरी चीज़ें प्रतिदिन की जानी चाहिए, किन किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, संपूर्ण एवं संतुलित व्यक्तित्व कैसे मिल सकता है, एक सभ्य समाज के लिए क्या आवश्यक शिष्टाचार हैं, इत्यादि।

2) मुझे पता चला कि मैं बदलते समय के साथ नहीं सोच पा रही थी जोकि सारी समस्याओं एवं उलझनों की जड़ है। मुझे पता चला की अगर आप अग्रगामी सोच के साथ नहीं जी रहे तो आप वस्तुतः पीछे जा रहे हैं। कई सवाल जब मुझसे पूछे गए और उसका जो मैंने उत्तर दिया उससे भैया एवं भाभी ने निष्कर्ष निकाला कि समस्या की जड़ मेरी सोच है और उस सोच को अगर बदला नहीं जाय तो मेरी प्रगति मुमकिन नहीं है। मैंने अपने कई व्यक्तिगत उलझनों को भी भाभी से साझा किया और उन्हें बताया कि उसपर मेरी निजी राय क्या है।

लगभग सारे बिन्दुओं पर मुझे एक नए तरह से सोचने का तरीका बताया गया। आखिरकार, मुझे यह अहसास हुआ कि उलझने तब तक उलझने बनी रहती हैं जब तक की उनको देखने का सही नजरिया नहीं मिल जाता। मैं निष्कर्ष पर पहुची कि इस दुनिया में समस्या जैसी  कोई चीज़ नहीं है बल्कि दृष्टिकोण के बदले जाने की जरुरत है और अगर आपको एक सही सलाहकार समय पर मिल जाय तो यह वरदान जैसा है। जरुरत बस इस बात की है कि, आप ठण्ढे दिमाग से यह तय करें कि आपके आसपास कौन ऐसा सलाहकार है जिसकी आप मदद ले सकते हैं।

3) एक चौंकाने वाली बात जो मुझे पता चली कि आज के समय में इन्टरनेट आपके ज्यादातर प्रश्नों के उत्तर दे सकता है, बशर्ते आप उसका सही इस्तेमाल करना सीख जाएँ। क्योंकि, इन्टरनेट पर एक सवाल के कई उत्त्तर आपको मिलते हैं जो आपको एक नए उलझन में भी डाल सकते हैं, इसलिए किसी अनुभवी से जरुर चर्चा कर लेनी चाहिए कि बहुत सारे उत्तरों में से सबसे ज्यादा उपयुक्त उत्तर कैसे चुना जाय।

भैया से मैंने यह समझा कि इन्टरनेट से अपने लिए उपयुक्त उत्तर जानना एक कला है जो आपको अभ्यास और अनुभव से आता है| मैं इस विषय पर भैया से पूरी इत्तेफाक रखती हूँ क्योंकि इस मामले में उनके स्वयं का उदहारण काबिले तारीफ़ है। उन्होंने स्वाध्याय के माध्यम से वेबसाइट बनाना और उसे सर्च इंजन में रैंक करवाना सब कुछ सीखा है इन्टरनेट के माध्यम से।  इन्टरनेट से उन्होंने कंप्यूटर की भाषा कोडिंग भी सीखी है।

आज की तारीख में भैया कम से कम चार ब्लॉग साइट्स पर काम कर रहे हैं और उनके ब्लॉग पोस्ट गूगल में रैंक कर रहे हैं प्रथम पृष्ठ पर। भाभी की साझेदारी में उनकी एक रिव्यू ब्लॉग https://flitmart.com/ है जिसे मैंने खुद पढ़कर देखा है।  ब्लॉग्गिंग को तो भैया एक वैकल्पिक कैरिएर के तौर पर भी देखते हैं और हर एक अल्प-संसाधन विद्यार्थी को वित्तीय आत्मनिर्भरता के लिए ब्लॉगिंग की सलाह देते हैं। उनके हिसाब से विद्यार्थी को इसमें दो तरफा फायदा हो सकता है: एक तो वित्तीय आत्मनिर्भरता एवं दूसरा लेखन शैली का विकास ।

4) यहाँ आकर मुझे महसूस हुआ कि गरिमा- पूर्ण जीवन के लिए, सर्वप्रथम मुझे खुद को भविष्य के लिए तैयार करना अनिवार्य था। तैयारी कई दृष्टिकोण से करनी थी। जैसे कि पहले वित्तीय रूप से अपने को आत्मनिर्भर बनाना यानि कि एक अच्छी -सी नौकरी प्राप्त करना। समाज में अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनाना यानि कि लोग मुझे मेरी उपलब्धियों के लिए जाने न कि पिता और भाई के बनाये हुए मुकाम के लिए। यह बिल्कुल स्पष्ट था कि, यह तभी संभव हो पाता यदि मैं बजाय दूसरे चीजों के, इस बात पर ध्यान देती कि यह सब हासिल कैसे हो सकता है और, एक योजना बनाकर अपने अभिभावक से उस योजना को मूर्त -रूप देने के लिए रणनीति बनाती। दुर्भाग्य से मैं ये सब नहीं कर रही थी बल्कि, केवल ख्याली पुलाव पकाती रही थी कि मुझे अपने लिए और अपने कुनबे के लिए कुछ तो करना है।

5) यहाँ आने से पूर्व मैं यह सोचती थी कि ज्ञान के लिए दोस्त और वर्तमान संगति ही सबसे अच्छे स्रोत हैं और दोस्तों से अच्छा कोई सलाहकार नहीं है। मैं अबतक यह जानने में असफल रही थी कि जो कुछ भी मैं सीख रही थी उसकी सत्यता, गुणवता एवं महत्ता वास्तविक जीवन के लिए है भी या नहीं। मैं कदाचित समय से नहीं जान पायी कि मेरे सफल-सुखद जीवन एवं करियर के लिए अभिभावक से अच्छा कोई सलाहकार नहीं हो सकता। मैं यहीं आकर जान पायी कि सुने-सुनाये ज्ञान और सूचना को इन्टरनेट से मिलान करना एवं तत्पश्चात अभिभावक से साझा करना और फिर निष्कर्ष पर पहुचना, गुणवत्तापूर्ण जानकारी लेने की सही प्रक्रिया है।

6) चूँकि स्नातकोत्तर का वह मेरा अंतिम साल था इसके लिए मैं एक तरफ बहुत खुश थी, परन्तु साथ ही साथ यह जानकर थोड़ी निराश भी, कि मेरी लेखन शैली जिस उच्च स्तर की होनी चाहिए वह कदाचित नहीं है और उसके लिए मुझे बहुत परिश्रम करना है। हालांकि इसमें भी मैं अपनी ख़ुशी एवं सौभाग्य देखती हूँ कि मुझे समय रहते यह पता चल गया कि सुधार क्या करना है और कहाँ करना है। मेरे लेखन कौशल्य की जाँच विराम चिन्हों से प्रारम्भ हुई।

7) हिंदी के विराम चिन्ह!!! जिन्हें मैं बचपन से प्रयोग में ला रही थी किन्तु उनके नाम मैं शुद्ध-शुद्ध नहीं जानती थी। भैया ने मुझे बस अचानक से पूछ लिया “तुम तो मास्टर्स कर रही हो हिंदी साहित्य से तो छोटी- मोटी चीज़े तो जानती ही होगी, जरा हिंदी के सारे विराम चिन्ह लिखो और उनके नाम बता दो” । मुझे सच में अभी तक केवल यही पता था की भैया तो केवल इंगलिश के मास्टर हैं और उनको हिंदी की बारीकियो से शायद ही लेना देना रहा हो। उनका सिविल सर्विसेज (UPSC) का अनुभव उनकी जानकारी का दायरा इतना विस्तृत करता है, मुझे तनिक भी भान नहीं था। सो, मैं बिल्कुल पूरे आत्मविश्वास के साथ लिखने बैठ गयी। लेकिन यह क्या! मुझे पता चला कि जो विराम चिन्ह भैया लिख रहे थे उनके नाम मैं हिंदी में लिख ही नहीं पा रही थी।

क्या आपको सारे विराम चिन्हों के नाम हिंदी में ज्ञात हैं? यदि नहीं तो, जरा गहरे अवलोकन करें, हिंदी के ये सारे विराम चिन्ह निम्न प्रकार से हैं :

1) पूर्ण विराम (|) (Full Stop)
2) अल्प विराम (,) (Comma)
3) अर्ध विराम (;) (Semicolon)

4)अपूर्ण विराम (:) (Colon)
5) प्रशनवाचक चिन्ह (?) (Question Mark)
6) विस्मयादिवाचक चिन्ह (!) (Exclamation Mark)
7) निर्देशक (—) (Dash)
8) योजक (‐) (Hyphen)
9) उद्धरण चिन्ह (” “) (Quotation Mark)
10) विवरण चिन्ह (:-) (Sign of Following)

7अ) वार्तालाप के दौरान, मुझे भैया से यह भी पता चला कि ये विराम चिन्ह कितने महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, प्रभावकारी लेखन शैली के लिए। विराम चिन्ह कैसे सम्पूर्ण भाव एवं अर्थ को बदल सकते हैं इसकी पहली औरअंतिम स्तरीय जानकारी मुझे भाई साहब से मिली। एहसास हुआ कि अभी तक की मेरी जानकारी केवल सैद्धांतिक- अव्यवहारिक ही थी।

8) मुझे पता चला कि लेखन शैली को प्रभावी और मजबूत बनाने के लिए शब्दों से कैसे खेलना होता है। भैया ने मुझे बताया कि जो विद्यार्थी किसी भाषा और उसके साहित्य की पढाई कर रहे हैं या degree ले रहे हैं उन्हें सर्वप्रथम शब्दों से खेलने आना चाहिए। अर्थात उनके पास एक ऐसी कला होना चाहिए कि वो जब चाहें, जैसे चाहें अपने मौलिक शब्दों एवं वाक्यों से कोई भी विचार प्रभावकारी तरीके से रख सकें। मुझे बताया गया कि यह कला विकसित करना निरंतर अभ्यास से संभव है और इसके लिए चिन्तन एवं लेखन के लिए प्रतिदिन कम से कम एक घंटे का समय विद्यार्थी को निकालना ही चाहिए। अबसे मैंने फैसला लिया है कि अपने लेखन कला को इन कसौटियों पर कसने की कोशिश करूँगी। वैसे भी मेरा एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है लेक्चरर बनना और बिना अच्छी भाषाई ज्ञान के इसे हासिल करना मुश्किल है।

9) मुझे भैया की जिन्दगी के कुछ ऐसे पहलू  मालूम हुए जिनसे मैं लगभग अनभिज्ञ थी। भाई साहब ने अपने जीवन  के कुछ ऐसे पड़ाव को साझा किया जिससे मैं अंतरतम से उद्वेलित हो गयी। उनके जीवन संघर्ष से जुड़े अधिकांश पहलू मुख्यतया तीन बातें सिखाती हैं:   (i) आप तब तक नहीं हारते जब तक कि आप मान न लें। (ii) अगर आपको सच में प्रगति करनी है तो अपने वर्तमान से निकलने की व्याकुलता आपके दिनचर्या में ही दिखनी चाहिए। (iii) आपको अपने दिमाग की क्षमता का अंदाजा तब नहीं हो सकता जब तक आप अपने दिमागऔर चिन्तन  को चुनौती नहीं देते।

10) मैंने भाई साहब से अभ्यास (revision) और उसके वैज्ञानिक पहलू को भी समझी। दरअसल, कोई भी नयी चीज़ जो आप पढ़ते हैं, अगर 48 घंटे के अन्दर  पुनर्भ्यास (पुनः + अभ्यास ) नहीं किया गया तो सामान्य व्यक्ति केवल 5% ही याद रख पाता है! इसलिए जब भी आप नयी चीज़ पढ़ें जिसको याद रखना सफलता के लिए आवश्यक है तो, एक बिन्दुवार सारांश जरुर बना लें। त्वरित अभ्यास के लिए नोट्स को बिल्कुल संछिप्त और बिन्दुवार ही रखें और उसे हर जगह लेकर जाएँ।

बार- बार अभ्यास से सारी चीज़ें आपके स्थायी याददाश्त (memory) में चली जाती हैं वरना एक बार पढ़ी हुई चीज़ आपके अस्थायी याददाश्त में से ही गायब हो सकती हैं। बिन्दुवार बने नोट्स को जब आप यात्रा में हों या फिर अकेले हों तो एक-एक कर हर बिंदु को ध्यान से देखे और आंखे बंद करके पूरी बात याद करने की कोशिश करें । इससे आपके दिमाग के तंतुओं एवं कोशिकाओं पर बल पड़ता है, कोशिकाएं मजबूत बनती हैं और आपकी स्मरण शक्ति विकसित होती जाती है।

11) सबसे महतवपूर्ण बात जो मै महसूस कर पाई वो यह थी कि मेरे पास 24×7 एक समाधान स्रोत है (खुद मेरे बड़े भाई) जो इस दुनिया में कम लोगो को नसीब होता है। तात्पर्य यह है की एक बटन क्लिक करके मैं भैया से किसी भी समस्या का  समाधान जान सकती हूँ। चाहे वह पढाई से सम्बंधित हो या फिर असली जिंदगी की कोई भी समस्या, मैंने महसूस किया कि उनके पास सबका हल है।

12) अपने कई बहुमूल्य सुझाओं के रखते हुए भैया ने जिस बात पर सबसे जोर डाला वो यह कि, छुधा इस दुनिया में सारी उपलब्धियों के मूल में होता है । जिस व्यक्ति की छुधा (भूख) जितना बड़ी होती है उसे इस दुनिया में उतना ही बड़ा मुकाम मिलता है| पानी के अन्दर अगर आपको पकड़कर डुबाया जाय तो कैसी छटपटाहट और भूख होती है सांस के लिए? बिल्जकुल इसी तरह जब तक आपको सफल होने की तीव्र भूख नहीं होती, आप को सफलता नहीं मिलती। चूँकि, बड़ी सफलताओं का मार्ग छोटी-छोटी कई सफलताओं से होकर गुजरती हैं, इसलिए आपकी यह भूख उन छोटी सफलताओं पर ही नहीं खत्म होनी चाहिए जब तक कि आपकी इष्ट और बड़ी सफलता मिल न जाय।

एक और बात मुझे यह भी बताया गया कि, सफलता की इस भूख के मूल में कोई न कोई गहरा सा कारण या वजह होता है। वजह कोई एक छोटी सी घटना से लेकर हादसे, उद्वेलित करती बाह्य प्रेरणा, स्वतः स्फूर्त प्रेरण अथवा, कोई प्रतिशोध की भावना भी हो सकती है। भैया कहते हैं कि सफलता सबसे मीठा परन्तु सर्वाधिक प्रभावकारी प्रतिशोध है (Success is the sweetest yet biggest revenge)। सो, अगर आपने प्रतिशोध की आग को सफलता पाने की दिशा में लगा दिया तो समझिये कि आपकी सफलता आसान हो गयी और आप अपने प्रतिद्वंदी को बिना नुकसान पहुचाये सबसे बड़ा प्रतिशोध भी ले पाने में कामयाब होंगे।

13) बड़े भाई साहब ने बताया कि तेज, मजबूत, सुन्दर और बलवान लोगों ने ही बड़ी सफलताएँ नहीं पाई, बल्कि इतिहास उन्होंने बनायीं जो अपंग थे, कुरूप थे, बहरे थे और पढने में सामान्य थे ! बस एक बात सब में मौजूद थी वो था, कभी न ख़त्म होने वाली भूख ! स्टीफेन हाकिंग अपंग थे, मंडेला और मार्टिन लूथर किंग कुरूप थे। हिटलर और नेपोलियन नाटे थे। एडिसन बहरे थे। गाँधी जी तृतीय श्रेणी वाले विद्यार्थी थे। २०१५ की UPSC टॉपर इरा सिंघल १००% अपाहिज हैं।  दिखने में सब एक दूसरे से अलग हैं लेकिनं, एक खास गुण जो सब में बराबर रूप से मौजूद रहा है, वो है उनकी न बुझने वाली अंतःकरण की भूख एवं ज्वाला । कारण सबके अलग थे लेकिन ये कारण अलग-अलग तरीके से केवल और केवल भूख ही पैदा कर रहे थे।

14) भैया ने मुझे यह भी स्पष्ट किया की अपने कारण को सामने लिख कर रखें, देखते रहें, क्योंकि वही आपकी भूख बनाये रखेगा और आपके बढ़ते जाने के लिए संबल देता रहेगा। जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के समय भगत सिंह छोटी उम्र के थे, अंग्रेजो के इस अत्याचार ने उनको बड़ा उद्वेलित किया, वो जलियांवाला बाग़ गए और वहां की खून से सनी मिटटी ले आयी । अपने पढाई के कमरे में उस मिटटी को एक पारदर्शी बोतल में रख कर वो हमेश देखा करते थे ताकि उनके अन्दर प्रतिशोध की भूख कम न हो । और फिर इतिहास गवाह है कि अंग्रेजी साम्राज्य उनकी देशभक्ति के प्रकोप से हिल गया था । भगत सिंह की देशभक्ति कई और देशभक्तों को जन्म न दे दे, इस डर से अंग्रेजो ने उसे चुपचाप और निर्धारित तिथि से पहले फांसी दे दी थी ।

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December, 15th, 2021