हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) के अंतर्गत आज हम जानेंगें हिंदी भाषा में वर्णों की संख्या कितनी है? , वर्ण कितने प्रकार का है? हिंदी भाषा की अपनी लिपि क्या है ? आदि। इस आर्टिकल के अंतर्गत हम इसके बारे में विस्तृत रूप से जान पायेंगें।
ऐसा कहा जाता है कि किसी भी विषय को पढ़ने के लिए अथवा उस विषय विशेष पर मजबूत पकड़ बनाने के लिए भाषा को केंद्र में रखना चाहिए क्योंकि बिना भाषा के आप कुछ भी न तो पढ़ सकते हैं और न ही आप लिख सकते हैं। इसलिए अपनी अभिव्यक्ति पर धाक जमाने के लिए आपको भाषा पर धाक ज़माना होगा।
हिंदी वर्णमाला का अर्थ | Hindi Alphabet
जिस प्रकार किसी माला को बनाने के एक धागे में फूलों को पिरोया जाता है ठीक उसी वर्णों का क्रमबध्द, व्यवस्थित एवं सार्थक समूह को वर्णमाला कहा जाता है। हिंदी वर्णमाल में वर्णों की संख्या44 माना गया है।जिसे स्वर और व्यंजन के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया है।प्रत्येक भाषा की अपनी एक लिपि होती है तथा वर्णों की निश्चित संख्या होती है।
भाषा की प्रक्रिया
चूँकि मनुष्य एक सामाजिक और चिंतनशील प्राणी है अपनी इसी चिंतन परक और विवेकशील होने के कारण अपने विचारों का आदान प्रदान करने के लिए एक साधन अथवा माध्यम की आवश्यकता महसूस हुई। आरम्भ में व्यक्ति अपनी विचारों की अभिव्यक्ति देने के लिए संकेत का प्रयोग करते थे। धीरे धीरे उसे ही चित्र के रूप में उकेरने लगे और बदलते वक्त के साथ व्यक्ति बोलना भी आरम्भ कर दिया ततपश्चात भाषा बनने लगी।
प्रत्येक देश अथवा समाज का पहचान उसके साहित्य और संस्कृति से होता है। साहित्य ही है जो अपने भीतर समाज के धरोहर को समाहित किये रहती है।प्रत्येक समाज अथवा देश को अपने कामकाज निपटाने के साथ साथ जनता से संपर्क साधना होता है जिसके लिए किसी भाषा विशेष की आवश्यकता होती है।
यही भाषा उस देश के लिए संपर्क भाषा अथवा राजभाषा व् राष्ट्रभाषा के रूप में उभरकर आती है।हिंदी को भारत में अनुछेद ३४३ में राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। हिंदी राजभाषा के साथ सम्पर्क भाषा के रूप में भी कार्य करती है।आधुनिक काल में हिंदी भाषा के ‘देवनागरी लिपि’ का प्रयोग होने से पूर्व ‘कैथी’ तथा ‘महाजनी’ लिपि का प्रयोग किया जाता था।परन्तु आज ‘कैथी’ और ‘महाजनी’ लिपि प्रचलन में नहीं है।
आज हिंदी भाषा के लिए देवनागरी लिपि प्रचलित है और इसका उच्चारण वैज्ञानिक है क्योंकि हिंदी जैसे बोली जाती है ठीक वैसे ही लिखी भी जाती है।भाषा का सार्थक और छोटी इकाई शब्द को माना जाता है तथा भाषा की लघुत्तम इकाई ध्वनि को माना जाता है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है :- “जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहां के जनता की चित्तवृत्त्यों का संचित प्रतिबिम्ब होता है। जनता की चित्तवृत्ति बहुत कुछ राजनितिक, सामाजि,साम्प्रदायिक तथा धार्मिक परिस्थिति के अनुसार होती है।“
ध्वनि — वर्ण –अक्षर — शब्द — पद — वाक्य = भाषा
भाषा की लघुत्तम श्रव्य इकाई ध्वनि है वहीँ भाषा की लघुत्तम लिखित व् दृश्य इकाई जिसे बोला, सुना, लिखा एवं पढ़ा जा सकता है वह वर्ण है। अक्षर:- वैसे शब्दांश हैजिसे एक ही श्वास में बोला जा सके और लिखते समय जिसका आप खंड या टुकड़ा भी नहीं कर सकते।
भारतीय दर्शन में अक्षर को ब्रह्म का पर्याय माना गया है क्योंकि जिस प्रकार ब्रह्म अनश्वर और अजर है ठीक उसी प्रकार अक्षर है जिसका टुकड़ा नहीं किया जा सकता है।वस्तुत :ब्रह्म निर्गुण ,निराकार और सर्वव्याप्त है।
जहाँ वर्णों के समूह से शब्द बनते है वहीँ शब्दों के समूह जब आपस में सम्बन्ध स्थापित कर लेता है तो वह पद कहलाता है। शब्द सार्थक तो होता है परन्तु वाक्य में प्रयुक्त किये बिना उसका कोई निश्चित अर्थ नहीं निकाला जा सकता है। पदों का सार्थक समूह ही वाक्य कलाता है और इस प्रकार भाषा बनती है।
स्वर एवं स्वर से रहित व्यजन व्यंजन भी वर्ण होता है। परन्तु अर्थ की दृष्टि से वर्ण भाषा की निरर्थक इकाई है।
हिंदी वर्णमाला के प्रकार | Types of Hindi Alphabet
जैसे कि आप जानते हैं किसी भी भाषा को समझने के लिए आपको उसके ध्वनियों से परिचित होना पड़ेगा। जहाँ तक उस भाषा को पढ़ने और लिखने में प्रयुक्त करने कि बात हो तब तो आपको उसके लिपि चिन्हों से अवगत होने की आश्यकता है
जिसके लिए आपको ये जानना जरुरी हो जाता है की आप जिस भाषा विशेष पर अपनी पकड़ मजबूत बनाना चाहते हैं उसमे वर्णों की संख्या कितनी हैं, उसके उच्चारण स्थान क्या हैं आदि।
आपको बताते चलें तो जहाँ तक हिंदी भाषा में वर्णों के संख्या की बात है वह मानक हिंदी वर्णमाला के अनुसार 44 है और इन वर्णों को दो भागों में बांटा गया है स्वर वर्ण एवं व्यंजन वर्ण।
मानक हिंदी वर्णमाल में मूलत: 11स्वर हैं। हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में ग्यारह स्वरों के अतिरिक्त अनुस्वार (अं) और विसर्ग (अ:) नामक दो ध्वनियां और भी होती हैं, जिन्हें अयोगवाह कहते हैं। इन दोनों वर्णों को मानक हिंदी स्वरों में स्थान नहीं दिया गया है।
वहीँ हिंदी वर्णमाल में कुल 35 व्यंजन होते हैं जिसमें ड़, ढ़ को उत्क्षित्प व्यंजन कहा जाता है।उत्क्षिप्त का अर्थ होता है – फेंका हुआ। अर्थात वैसे व्यंजन जिसके उच्चारण करते समय जिह्वा का अग्र भाग मूर्धा को स्पर्श करते हुए श्वास वायु को बाहर की ओर फेंके तब वह उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाता है। उत्क्षिप्त व्यंजन को ही द्विगुण ,द्विस्पृष्ट एवं ताड़नजात व्यंजन कहा जाता है।
स्वर वर्ण एवं व्यंजन वर्ण के अतिरिक्त संयुक्त व्यंजन,अनुनासिक, हल चिह्न एवं आगत वर्ण भी हिंदी वर्णमाला के अंग है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अधीनस्थ संस्था “केंद्रीय हिंदी निदेशालय” द्वारा निर्धारित हिंदी वर्णमाला का मानक रूप कुछ इस प्रकार है :–
स्वर वर्ण (Vowels)
स्वर उस वर्ण या ध्वनि को कहते हैं जिसके उच्चारण में किसी दूसरे वर्ण की सहायता नहीं लेनी पड़ती है अर्थात जब बिना रूकावट के ही किसी वर्ण का उच्चारण हो रहा हो तो वह स्वर वर्ण कहलायेगा।
स्वर’ का उच्चारण करते समय साँस, कण्ठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है। जिसमें अनुस्वार और विसर्ग को अयोगवाह कहा जाता है जिसका मानक हिंदी में कोई स्थान नहीं है।
स्वर वर्ण के उदाहरण : अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ = 11
हिंदी में ॠ को अर्ध स्वर माना जाता है। पारंपरिक हिंदी वर्णमाला में स्वरों की संख्या 13 होती थी परंतु हिन्दी भाषा में प्रायः ॠ और ऌ का प्रयोग अब नहीं होता है।
व्यंजन वर्ण (Consonant)
व्यंजन वर्ण : वैसे ध्वनि जिसका उच्चारण दूसरे वर्णों की सहायता लेकर किया जाता है अर्थात जब स्वर वर्ण की सहायता से किसी वर्ण का उच्चारण करेंगे तो तब वहां व्यंजन वर्ण होगा।
व्यंजन’ का उच्चारण करते समय साँस, कण्ठ, तालु आदि स्थानों से रुककर निकलती है। वैसे तो व्यंजनों (Consonant) की संख्या 33 ही होती है। लेकिन कुछ संयुक्त वर्ण और मिलकर 41 हो जाते हैं।
व्यंजन वर्ण के उदाहरण : =33 +2 (35)
क वर्ग : क , ख , ग , घ , ङ
च वर्ग : च , छ , ज , झ , ञ
ट वर्ग : ट , ठ , ड , ढ , ण
त वर्ग : त , थ , द , ध , न
प वर्ग : प , फ , ब , भ , म
य र ल व् श (अंत:स्थ व्यंजन)
ष स ह (उष्म व्यंजन)
क्ष, श्र, त्र , ज्ञ (संयुक्त व्यंजन )
क वर्ग से प वर्ग तक के सभी वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते हैं परन्तु (ड़, ढ़ – उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाता है।)
अनुस्वार
अनुस्वार का प्रयोग पंचमाक्षर के रूप में होता है। क, च, ट, त, प इन पांचों वर्गों के पंचम अक्षर इस प्रकार है : ङ,ञ, ण,न,म। जब ये किसी शब्द के साथ बिंदु रूप में प्रयोग होता है तब अनुस्वार कहलाता वरना ये नासिक्य है। अनुस्वार युक्त शब्द तत्सम होते हैं। अनुस्वार का प्रयोग स्वर और व्यंजन के बीच में होता है।
जैसे : स्वयं ,कंटक अहं,शिवं आदि।
अनुनासिक
अनुनासिक न तो स्वतंत्र स्वर वर्ण है और न ही इसका चिन्ह व्यंजन होता है बल्कि यह स्वरों का ध्वनिगुण है।चन्द्रबिन्दु अनुनासिक का चिह्न है। जैसे : आँख , ऊँट, ऊँचाई आदि।
अनुनासिक को सवररंजक भी कहा जाता है क्योंकि यह यह जिस भी वर्ण के साथ प्रयुक्त होता है उसके उच्चारण में हवा नाक से निकल सकती है। अत: यह स्वर को नासिका से रंजीत कर देता है।
अब तो आप यह भी जाना चाहेंगे की अनुनासिक युक्त शब्द संरचना अथवा उतपति के आधार पर किस वर्ग में आएगा. अनुनासिक युक्त शब्द तद्भव शब्दों के वर्ग में आते है। जैसे : चाँद, दाँत, डाँट आदि।तद्भव शब्द जो संस्कृत अथवा तत्सम का हिंदी रूपांतरण(Translated) है.
हिंदी में यदि शिरोरेखा के ऊपर कोई वर्तनी हो तो चन्द्रबिन्दु के स्थान पर केवल अनुस्वार का ही प्रयोग होगा।
विसर्ग
जिसका शाब्दिक अर्थ होता है – भेजना अथवा जाना। हिंदी वर्णमाला के अनुसार प्रत्येक वर्ण का उच्चारण स्थान और ध्वनि अलग है जब हम विसर्ग युक्त शब्दों का उच्चारण करते हैं तब हमें उसका अंतिम ध्वनि ‘ह’ सुनाई देता है।
अधिकांशत: विसर्ग युक्त शब्दों का प्रयोग संस्कृत भाषा में की जाती है जो बहुवचन का बोध कराता है। विसर्ग को वर्णो के साथ मिलाकर लिखा जाता है।तथा विसर्ग युक्त शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे:- अत: , अंतत:, प्रात: आदि.
हल चिह्न
किसी भी व्यंजन को आधे प्रयोग करने के लिए अथवा स्वर रहित व्यंजन को लिखते समय उसके नीचे हल चिह्न का प्रयोग किया जाता है. हल चिह्न व्यंजन से स्वररहित होने का सूचक है।
संयुक्ताक्षर बनाने में हलन्त चिह्न का प्रयोग किया जाता है परन्तु कुछ वर्णों में तो इसे अनिवार्य रूप से किया जाता है। जैसे :– छ, ट, ठ, त, ड, ढ , ह। इनसे बने शब्द कुछ ऐसा है:– सन्नटा , उच्छ्वास ,चिह्न आदि।
तत्सम शब्दों तथा सम्बोधन में हलन्त अनिवार्य है जैसे : हे भगवान् , हे राजन आदि .
सर्वाधिक पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
वर्णों का क्रमबध्द, व्यवस्थित एवं सार्थक समूह को वर्णमाला कहा जाता है।जिस प्रकार आप किसी माला को बनाने के लिए अलग अलग मोती का चयन करते हुए उसे धागे में पिरोते हैं ठीक उसी प्रकार किसी भी भाषा को लिखित रूप देने के लिए जब हम कई सारे ध्वनि प्रतीकों के सार्थक और क्रमबध्द रूप से प्रयोग करते हैं तब वर्णमाला कहलाता है।
चूँकि आप जानते हैं की विभिन्न भाषाओँ को बोलने और लिखने के लिए उसके अलग अलग ध्वनि चिन्हों को निर्धारित किया गया है ठीक इसी प्रकार हिंदी भाषा के लिए ध्वनि चिन्हों का निर्धारण किया गया है। मानक हिंदी वर्णमाला के अनुसार हिंदी में 44 वर्ण है।
मानक हिंदी वर्णमाला के वर्ण का दो भेद है :- स्वर वर्ण एवं व्यंजन वर्ण. मानक हिंदी वर्णमाल में मूलत: 11स्वर हैं।अनुस्वार (अं) और विसर्ग (अ:) नामक दो ध्वनियां और भी होती हैं, जिन्हें अयोगवाह कहते हैं। वहीँ हिंदी वर्णमाल में कुल 35 व्यंजन होते है। जिसमें ड़, ढ़ को उत्क्षित्प व्यंजन कहा जाता है। व्यंजन के भी तीन भेद हैं :- स्पर्श व्यंजन, संयुक्त व्यंजन एवं उष्म व्यंजन।
उत्क्षिप्त का अर्थ होता है – फेंका हुआ। अर्थात वैसे व्यंजन जिसके उच्चारण करते समय जिह्वा का अग्र भाग मूर्धा को स्पर्श करते हुए श्वास वायु को बाहर की ओर फेंके तब वह उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाता है। उत्क्षिप्त व्यंजन को ही द्विगुण ,द्विस्पृष्ट एवं ताड़नजात व्यंजन कहा जाता है।
अंतिम दो शब्द हिंदी वर्णमाला के बारे में
इस लेख में हमने हिंदी वर्णमाला (Hindi Varnamala) को विस्तार से बताने की कोशिश की है। हमें विश्वास है की लेख आपको अवश्य पसंद आया होग। वस्तुतः किसी भी भाषा के लिए वर्णमाला उसका मौलिक पहचान और संरचनात्मक इकाई है। इस दृष्टि से किसी भी भाषा को सही अर्थ में जानने के लिए उस भाषा के वर्णमाला का ज्ञान नितांत आवश्यक है।
इसे ध्यान में रखते हुए हमने हिंदी वर्णमाला के मूलभूत इकाइयों जैसे स्वर, व्यंजन, अनुस्वार, विसर्ग, हलन्त इत्यादि का उल्लेख किया है । पोस्ट पसंद आया हो तो इसे जरूर शेयर करें क्योकि इससे हमारा मनोबल बढ़ता है और हम अपने दर्शको (audience) के लिए और भी उपयोगी पोस्ट लिखने के लिए प्रेरित होते है।