बुरे वक्त का भला पहलू जिसे आप ने कभी सोचा नहीं

इसे ध्यान से पढ़े, शायद आज के बाद समय को देखने का आपका नजरिया ही बदल जाय !

“जिंदगी में बुरा वक़्त कभी नहीं आता!
सिर्फ दो तरह का वक्त आता है, एक – अनुकूल वक्त और दूसरा- प्रतिकूल वक्त !
अनुकूल वक्त को हम ‘अच्छा समय’ कहते हैं!
प्रतिकूल वक्त को हम ‘बुरा समय ‘ कहते हैं!
अनुकूल वक्त, वह वक्त होता है जिसमें अधिक कर्म नहीं करना पड़ता! जीवन को कहीं से चुनौती नहीं मिलती!
जबकि प्रतिकूल वक्त, वह वक्त होता है जिसमें अधिक कर्म करना पड़ता है..और जीवन को सब ओर से चुनौती मिलती है!
इस अधिक कर्म के समय को ही हम बुरा वक्त कहते हैं, यद्यपि यह बुरा नहीं होता! ”

कल जब एक मित्र से, ज्योतिष की महादशाओं के संबंध में बात चल रही थी…. तब हमने उपरोक्त वक्तव्य दिया !
मसला दो कुंडलियों का था!
एक में, मारकेश के साथ साढ़ेसाती की दशा चल रही थी, और दूसरे में.. एक प्रतिकूल ग्रह की महादशा !
वे मित्र भी ज्योतिष के जानकार हैं !
उनके अनुसार इन दोनों जातकों का “बुरा समय” चल रहा है !
जबकि हमारा कथन था कि इसे बुरा वक्त न कहें, सिर्फ इतना ही कहें कि अधिक कर्म का समय चल रहा है!

हम जिस शब्द का प्रयोग करते हैं वह, हमारी चेतना के रूपांतरण में बड़ा फर्क पैदा करता है!
शब्द की एक ऊर्जा होती है, क्योंकि शब्द में भाव छिपा होता है! जिस शब्द का हम प्रयोग करते हैं उस शब्द में निहित भाव, हमारे अवचेतन में दाखिल हो जाता है!
फिर उस भाव के अनुरूप ही परिणाम भी आने लगते हैं!

मेरी दृष्टि यह है कि जीवन में बुरा वक़्त कभी नहीं आता !
दो ही तरह का वक्त आता है ‘आराम का वक़्त’ या ‘श्रम का वक़्त !’
ज्योतिष में अक़्सर, आराम के वक्त को.. जीवन का बेस्ट पीरियड कह दिया जाता है!
क्योंकि, यह वह समय होता है, जिसमें बहुधा सभी कुछ अनुकूल घटता है और हम आरामदायक जिंदगी गुजार लेते हैं!
यह अच्छा वक्त हमें चुनौती नहीं देता! वह कुछ भी ऐसा प्रतिकूल नहीं करता.. जिससे हमारी जीवन ऊर्जा को ठेल लगे अथवा उसमें कुछ गति उत्पन्न हो!
सरल शब्दों में कहें तो, अच्छा वक्त, बिना अधिक हलचल के शांति से गुजरता चला जाता है !
किंतु तब भी, अगर किसी व्यक्ति का चित्त…अशांत और उद्धिग्न स्वभाव का है.. तो वह , अच्छे समय में भी..दुखी, उदास और निराश ही बना रहता है!

किंतु अक़्सर तो अच्छा वक़्त, हमारे जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा खा जाता है…
क्योंकि इसमें हम सिर्फ आराम से जीते हैं और अधिक कर्म नहीं करते!
अच्छा वक़्त हमें शिथिल और आराम तलब बना देता है!
यह, वह वक्त होता है जिसमें धन, बिजनेस और वस्तुओं के संग्रहण में तो बढ़ोतरी होती है !
किंतु व्यक्तित्व में बढ़ोतरी नहीं हो पाती !

..व्यक्तित्व में निखार तो बुरे वक्त में ही आता है!
जो टफ टाइम होता है…वही हमारा निर्माण करता है !
किसी खिलाड़ी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तभी निकलता है, जब वह प्रतिकूल परिस्थितियों में होता है !
वह चाहे महान योद्धा हो, कवि हो या चित्रकार.. उसके भीतर का बेस्ट तभी बाहर आता है जब जीवन में चुनौती आती है !
अनुकूलन, आदमी को निकम्मा कर देता है!
संघर्ष, हमसे ही हमारा परिचय कराता है!
हमारे भीतर कितना सामर्थ्य छिपा हुआ है, हमें स्वयं नहीं पता होता!
हो सकता है हम हीरा हों.. और बेमोल पड़े रह जाएं !
संघर्ष हमें, हमारी कीमत की खबर देता है!
प्रतिकूलता, हमारे व्यक्तित्व में लोहा पैदा करती है!

लोग अपने बच्चों की कुंडली दिखाते हैं.. और यह जानकर बहुत खुश होते हैं कि उन्हें जीवन में लगातार अच्छी महादशाएं मिलने वाली हैं!
.. वे बुरी महादशा उसे डर जाते हैं!
मैं सदैव उनसे कहता हूं कि, कोई महादशा अच्छी-बुरी नहीं होती!
सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि हम उन्हें डील किस तरह से करते हैं!
उल्टे, अधिकतर तो मैंने यही देखा है कि.. अच्छी महादशा में व्यक्ति ज्यादा प्रगति नहीं कर पाता बल्कि, प्रतिकूल महादशा में ही वह अधिक प्रगति करता है!
शनि हो कि राहु, नीच हो कि अस्त , combust हो, कि मारकेश .. कोई ग्रह हमें दुःख नहीं देता!
कोई ग्रह आकस्मिक बुरी घटनाएं नहीं घटाता!
कोई ग्रह रोग और पीड़ा नहीं देता !
हमारे जीवन का अच्छा-बुरा,…हमारे कर्म, विचार और जीवनचर्या से ही निर्धारित होता है!
अगर आपके कर्म अच्छे हैं तो.. बहुत बुरी महादशा.. सबसे अधिक शुभ फलदायक होती है!
मेरे देखे, ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्होंने खराब ग्रह दशाओं में सर्वाधिक प्रगति की है.. और जो मारकेश की दशा में, पहले से अधिक स्वस्थ और ऊर्जावान हुए हैं !
वहीं ऐसे भी लोग हैं जो, बहुत अनुकूल ग्रह दशाओं में, बेहद रोगी, पीड़ित और परेशान रहे हैं!

आप ज्योतिष को माने या न माने किंतु यह तो सच है कि समय का चक्र एक जैसा नहीं चलता !
एक ऐसा वक्त आता है जब सब ठीक-ठाक चलता है, और एक ऐसा वक्त आता है जब कुछ भी ठीक नहीं चलता!
इसे ग्रहों की चाल कहें या जीवन-ऊर्जा के रूपांतरण की प्राकृतिक तरकीब,
… किंतु यह तो तय है कि, हमारे शरीरगत, मानसिक,भावनात्मक और आत्मिक विकास की प्रक्रिया, एक रहस्यमय तरीके से चुपचाप चलती रहती है!
यही अनुकूल और प्रतिकूल समय के रूप में हम पर प्रकट होती है!

हो सकता है ज्योतिष के विद्वान मुझसे सहमत न हों, किंतु मेरी समझ तो यही है कि..
चाहे वह भगवान राम हों या कृष्ण, अगर वे प्रतिकूलता से न जूझते तो उनका इतना भव्य चरित्र हमारे सम्मुख प्रकट न होता!
संघर्ष में व्यक्तित्व का निर्माण होता है!
चित्रकार, अगर चित्र न बनाए तो वह बेकार है!
किंतु बड़ा चित्र भी तब ही बनता है जब व्यक्तित्व बड़ा बनता है!
जितना परिष्कार हमारे व्यक्तित्व में आता है, उतना निखार हमारे कृतित्व में आता है! और व्यक्तित्व का निर्माण, चुनौतीपूर्ण स्थितियों में ही होता है!

ग्रह दशाओं का, अच्छे बुरे समय से कुछ लेना देना नहीं होता!
सारा मामला हमारे निर्माण और परिष्कार से संबंधित है!
..चित्त की दशा, घटनाओं को देखने की हमारी दृष्टि और उन पर होने वाली हमारी प्रतिक्रिया ही, अच्छे और बुरे समय की अंतिम निर्धारक है!
अगर हम सजग हैं, सकारात्मक हैं, सक्रिय हैं, निडर हैं, तथा..
सभी के शुभ और सर्व कल्याण के भाव से जीते हैं.. तो,
तथाकथित “बुरा वक़्त” हमारे जीवन का सबसे अच्छा वक्त होता है!

साभार
डॉ सलिल जी

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