हम सबको बचपन से ही अक्सर सुनने को मिलता है “होनहार बिरवान के होत चिकने पात।” ये लोकक्तियाँ सरदार भगत सिंह के लिए पूरी तरह से सार्थक साबित होता है। क्योंकि भगत सिंह जब बाल अवस्था में अपने मित्रों के साथ खेलते थे तब अपने साथी समूहों को दो टोली में बाँट देते थे और दोनों पक्ष एक दूसरे के साथ युद्ध अभ्यास करते थे। जहां भारतीय विद्वानों ने कहा है “पूत के पाँव पालने में दीखता है “वहीं पाश्चात्य विद्वान् फ्रायड जो मनोविश्लेषणवाद के प्रवर्तक है उन्होंने कहा है:“व्यक्ति को जो कुछ भी बनना होता है वह आरंभ के चार पांच वर्षों में बन जाता है।” फ्रायड के ये विचार भी भगत सिंह के लिए सार्थक सिद्ध होता है क्योंकि वे बाल अवस्था में अपने अनोखे कार्यों और विचारों से सबका मन मोह लेते थे। एक बार अपने पिता को आम के बीज को बोते देख उत्सुकता भरी नज़रों से प्र्शन करते हैं — पिता जी आप बीज क्यों बो रहे हैं पिता जी ने उत्तर दिए इस बीज से एक बड़ा आम का पेड़ उगेगा और उसमें ढेर सारा आम फलेगा। पिता के उत्तर पाते ही झट से कहते हैं तो फिर मैं बंदूके को बोऊँगा जिससे ढेर सारा बंदूके उगेगा और फिर हम अंग्रेजों से युद्ध करके उसे अपने देश बाहर निकालेंगे। एक बार अपने पिता सरदार किशन सिंह के साथ उनके मित्र नन्द किशोर मेहता से मिलने के लिए खेतों पर गए थे दोनों मित्र आपस में बातें करने में मशगूल हो गए और नन्हे सरदर मिट्टी से खेलने लगे। मिटटी के ढेर पर तिनके जमा कर रहा था अचानक से नन्द किशोर का नजर उन पर पड़ता है कि किस प्रकार वह मिट्टी को तिनके से ढक रहे हैं। नन्द किशोर भगत सिंह से बातें करने लगे और उनसे कई प्रश्न किये जिसका उत्तर उन्होंने बड़े ही निर्भिकता से दिए :
# तुम्हारा नाम क्या है ?
– भगत सिंह
# तुम क्या करते हो ?
# बंदूके बेचता हूँ।
# बंदूके ?
– हाँ – बंदूके बेचता हूँ।
# तुम्हारा धर्म क्या है ?
– देश भक्ति यानी देश का सेवा करना।
भगत सिंह का व्यक्तित्व
भगत सिंह एक क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं थे बल्कि एक विचारक ,दार्शनिक, पत्रकार एवं लेखक भी थे। वे हिंदी, अंग्रेजी,उर्दू, पंजाबी और बांग्ला भाषा के जानकार भी थे। भगत सिंह का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जिनका पूरा परिवार अंग्रेजों खिलाफ युद्ध कर रहे थे इनका परिवार एक आर्य समाजी जाट सिख परिवार था। इन्हें युद्ध के लिए प्रेरणा अपने परिवार से मिला। भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 ई को लायलपुर जिले बंगा गाँव में हुआ जो अब पाकिस्तान में है, उनका पैतृक गाँव खट्कड़ कलां पंजाब में है। पिता किशन सिंह सिंधु और माता विद्यावती कौर के संतान थे। इनके जन्म से पहले पिता और चाचा कारावास में थे जन्म के दिन दिन ही पिता की रिहाई हुयी एवं जमानत पर तीसरे दिन बाद दोनों चाचाओं को छोड़ दिया गया। तो दादी जी ने खुश होकर उनका नाम “भागों वाला ” रख दी जिसका अर्थ है “अच्छे भाग्य वाला ” बाद में इन्हे भगत सिंह कहा जाने लगा।
शिक्षा:–
भगत सिंह की प्रांरम्भिक शिक्षा गाँव के जिला बोर्ड विद्यालय में हुआ। एवं किसी कारणवश बड़े भाई की असामयिक मौत हो जाने के बाद पूरा परिवार लाहौर नवाकोट में आकर बस गए। सिख परिवार के परम्परा के अनुसार उस समय अपने बच्चे का नामांकन लोग खालसा विद्यालय में करवाते थे। परन्तु परिवार आर्य समाजी होने के कारण इनकी आगे की पढ़ाई के लिए इनका नामंकन डी. ए. वी.( दयानन्द एंग्लो वैदिक ) में करवाई गयी। अपने स्कूली पढ़ाई के दौरान इन्होने पाठ्यक्रम से अलग किताबें पढ़ना शुरू कर दी जिसमें सामाज सुधर , राजनितिक , आर्थिक सुधार से जुडी किताबें पढ़ ली। स्कूली पढ़ाई के दौरान जब वे करीब १४ वर्ष के थे तभी जलियाँवालाबाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 ई में पंजाब के अमृतसर में हुयी। यह सामूहिक नरसंहार जिसमें निहथे लोंगो जनरल डायर द्वारा गोलियों से लोंगो भून दिया गया। यह वैशाखी वाला दिन था इसी दिन रौलेट एक्ट की सभा के लिएलोग शामिल हुए थे। यह घटना भगत सिंह को अंदर से झकझोर दिया था। घटना का नाम सुनते ही स्कुल से पैदल चलकर जलियांवालाबाग पहुंचा और वहाँ लोगो दर्द से करहते हुए देखा , हजारों लोग उस कुएं में कूदकर जान दिए। उस कुएं से पानी निकलने पर पानी के जगह खून निकल रहा था जिसमे लोग जनरल डायर के अंधाधुंध गोलियों के वजह से कुएं में कूदे थे। खून से सने हुए मिट्टी को उन्होंने लाकर एक बोतल में रखा और अंग्रेंजो से बदला लेने के लिए योजना बनाने लगे। इस घटना ने उनके अंदर की क्रांतिकारी भावना को और भी ज्यादा जगा दिया।
जालियाँवाला बाग मैदान में उन्होंने शपथ ली की वो अपने देशवासियों के ह्त्या का बदला जरूर लेंगे। इस हत्याकांड के बाद गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया जिसमे उनके अनुसार सभी लोगों को आंदोलन में सहयोग देना था बिना खून खराबा किये। जो लोग सरकारी नौकरी कर रहे थे उनसे भी आग्रह किया गया गया की वो नौकरी छोड़ दे और जो स्कुल, कॉलेज में है वो अपनी पढाई छोड़ आंदोलन में शामिल हो जाएँ। भगत सिंह के पिता भी गाँधी जी के विचारों से प्रभावित थे। भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर वे गाँधी जी के साथ असहयोग आंदोलन(1920 – 1922 ई )से जुड़ गए और लाला लाजपत राय द्वारा लाहौर में स्थापित नैशनल कॉलेज में दाखिला लिया। इस कॉलेज में आने के बाद वे यशपाल, भगवति चरण,सुखदेव ,रामकिशन आदि क्रांतिकारी साथियों के सम्पर्क में आये। प्रोफेसर विद्यालंकार उनके राजनितिक गुरु थे, भगत सिंह उन्ही के दिशानुसार ही देशभक्ति कार्यों में अपनी भूमिका निभाते थे। अपनी आयु से भले ही छोटा थे परन्तु विचार बड़ों जैसी थी तभी तो सिर्फ १४ वर्ष की आयु में उन्होंने सरकारी विद्यालय की सारी किताबें जला दी जो अंग्रेज सरकार द्वारा विद्यालय को दिया गया था। विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए जुलूस निकलने लगे सारे पुस्तक और किताबें जला देने के बाद इनकी पोस्टर छपने लगा और सब जगह लगाया जाने जिससे अंग्रेजों के नजर में आ गया। इस जुलूस में नागरिकों द्वारा दंगा किया और इस दंगे में बहुत सारे लोगों पर लाठी चार्ज किया गया। इसके बाद देश में क्रांति की आग और भी ज्यादा भड़क गयी जिसका अंजाम देने के लिए भगत सिंह एवं उनके साथी कई योजना बनाये।
# आजादी से पहले उत्तर प्रदेश विदेशी वस्तुओं के बाजार के लिए प्रसिद्ध था इन वस्तुओं के बहिष्कार के लिए लोग चौरा चौरी नामक जगह में एकत्रित हुए थे , व्यापारी जुलुश में भड़के लोगों को देखकर पुलिस से सहायता मांगने गए की वो लोगों शांत कर दे ताकि अपने व्यापार को आगे बढ़ा सके। जब पुलिस ने लोगों को शांत करने के लिए हवा में फायरिंग और जब जनता शांत नहीं हुआ तो पुलिस ने कुछ लोगों को गोली मार दी और इसमें कई लोगों की जान चली गयी। क्रांतिकारी साथियों के मौत से भड़के लोगों ने पुलिस चौकी में आग लगा दी जिसमें करीब २२ पुलिस मारा गया। इस काण्ड को फिर चौरा -चौरी कांड(4 फरवरी 1922 )का नाम दिया गया। इस कांड से आहत गांधी जी ने आसहयोग आंदोलन को वापस लेने की बात की। इसके बाद स्वतंत्रताआंदोलन से जुड़े क्रांतिकारी का दो दल बन गया। एक नरम दल – महात्मा गाँधी , गोपाल कृष्ण गोखले , बदरुद्दीन तैयब जी , फिरोजशाह मेहता , और दूसरा गरम दाल- लाला लाजपत राय , बिपिन चंद्र पाल , बाल गंगाधर तिलक , अरविंदो घोस, भगत सिंह , राजगुरु ,रामप्रसाद बिस्मिल , चंद्रशेखर आजाद , सुखदेव आदि।
# अंग्रेजों के द्वारा भारत के संविधान का निर्माण किया जा रहा था जिसमे 7 सदस्यों का एक समूह जिसमें एक भी भारतीय नहीं था इसलिए इसे कांग्रेस ने “स्वेत कमीशन ” नाम दिया। जो साइमन कमीशन के नाम से प्रसिद्ध है जिसका स्थापना 8 नवंबर 1927 ई को हुआ। इसमें अंग्रेज यह जांच कर रहा था। कि क्या सचमुच भारतीय अपना संविधान लायक हो चुके हैं परन्तु उनका मकसद आरंभ से ही गुलाम बनाना था संविधान बनाकर लोगों का बस सहानुभूति पाना था। इस कमीशन का विरोध करने का एक और भी कारण था कि सभी भारतीय का मांग था की उनका अधिकार है की वो अपना देश का संविधान निर्माण करने के लिए एक सम्मेलन कारे जो इनका अधिकार है परन्तु इनके मांगों को इंकार कर दिया गया। देश में इस कमीशन का विरोध काले झंडा से किया गया। और लाहौर में इसका नेतृत्त्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। इस जुलुश में लाठी चार्ज के दौरान लाला लाजपत के सर पर गहरी चोट लगने से उनकी मौत हो गयी। लाला लाजपत राय द्वारा कही गयी बात की मेरे ऊपर की गयी लाठी चार्ज अंग्रेजों के ताबूत की एक एक कील होना चाहिए। इसके बाद युद्ध रुकनी नहीं चाहिए यह सुन भगत सिंह ने कहा की आप मेरे पिता के सामान हैं इसलिए आपके मौत के बदला हम जरूर लेंगे।
# जब परिवार ने भगत सिंह से शादी के लिए बात की तो रात में ही घर से कानपुर गए और उन्होंने अपने पिता को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने कहा कि आप तो जानते हैं की दादा जी ने मेरे शिक्षा के समय में यज्ञोपवीत करवाते समय कहा था की ये अपने देश की सेवा के लिए बना है। आज मै वही कर रहा हूँ मेरी दुल्हन भारत की आजादी है। यदि आजादी से पहले मैंने शादी की तो मेरी दुल्हन की मौत हो जायेगी। कुछ दिन बाद जब उन्हें खबर आयी की दादी जी बीमार हैं तो वे घर वापस आ गए भगत सिंह अपनी दादी के अलावे घर में पुरे परिवार के लिए लाडला थे घर वापस आने से पहले अपने परिवार से वचन लिए की उन्हें शादी के लिए कोई भी जबरदस्ती नहीं करेंगे। घर आने के बाद भी शांति से नहीं बैठे क्योंकि उन्हें अपनी भारत माता को आजादी जो दिलाना था इसलिए पुरे पंजाब में घूमना शुरू कर दिए ताकि वहाँ के जनता की समस्या को जान सके। और उन सबको समस्या से छुटकारा दिला कर अंग्रेजो को मुँह तोड़ जवाब दे सके और अपने भारतवासियों की सेवा कर सके।
# भगत सिंह एवं उनके साथी मिलकर एक नयी पार्टी बनाने की योजना किये अंग्रेजो के धन को लूटने के लिए योजना बनाये जो काकोरी कांड से प्रसिद्ध हुआ। जिसमे उनके कईक्रांतिकारी मित्र शामिल थे :- रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद आदि उनके कई मित्र पकडे गए और उसे छुड़ाने के लिए भगत सिंह कई प्रयास किये परन्तु असफल हुए। इस धन से उन्होंने हिन्हुस्तान रिपब्लिक एसोसिएसन पार्टी का गठन किये। और इसके बाद नौजवान पार्टी (मार्च 1926 )का भी गठान किया जिसमे देश के सभी नौजवानों को आंदोलन के प्रेरित करना था। इसके बाद नौजवान पार्टी के आधार पर विद्यार्थी यूनियन का गठन किया गया और इसका सदस्य नौजवान पार्टी के किसी भी देश का युवा उस देश की शक्ति होता है क्योंकि युवा अवस्था में व्यक्ति के अंदर इतनी शक्ति होती है की उससे कोई भी काम आसानी से करवाया जा सकता है उसे जिस दिशा में मोड़ दीजिये उसी दिशा में चल देता।अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध तो मंगल पांडेय ने पहले ही छेड़ चूका था जिसका अंजाम 1857 ई में दिया गया था जो आज प्रथम स्वतंत्रता युद्ध तथा सिपाही विद्रोह के नाम से जाना जाता है।
# भगत सिंह को बचपन से किताबें पढ़ने का बहुत शौक था ये शौक ही था जो उन्हें समाजवाद की ओर आकर्षित किया क्योंकि वे अंग्रेज लेखकों की जीवनियां एवं राजनीति और समाजवाद पर लिखी रचनाएँ पढ़ते थे। आखिरी समय में भी पाश्चात्य लेखक लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। वो एक क्रान्तिकरि ही नहीं बल्कि एक लेखक भी थे उनकी रचनाये इस प्रकार है : आत्मकथा ‘दी डोर टु डेथ ‘(मौत के दरवाजे पर ), ‘आइडियल ऑफ़ सोशलिज्म'(समाजवाद का आदर्श ), ‘स्वअनिधता की लड़ाई में पंजाब का पहला उभार ‘ . इसके अतिरिक्त उन्होंने लेख भी लिखे लिखे हैं जो इस प्रकार है : सुखदेव, राजगुरु, मैं नास्तिक क्यों हूँ ? क्रांतिकारी और लेखक के साथ ही साथ भगत सिंह एक पत्रकार भी थे जिन्होंने अकाली और कीर्ति नामक दो अखबार का भी सम्पादन किया है। जिसमे वे अंग्रेजो के प्रति अपना रोष प्रकट करते थे वे उन सारे पूजीपतियों से नफरत करते थे जो भारतीयों कोलूट फिर चाहे वह अंग्रेज खो या फिर भारतीय पूँजीपति वे दोनों भारतियों के खून को चूष रहे थे भारतियों को अमीरी और गरीबी का पाठ पढ़ा रहा था।
# सेन्ट्रल असेम्ब्ली के सभागार में बम फेकने का उद्देश्य था अंग्रेजो को सुचना देना था की अब भारतीय जाग चुके हैं इसलिए बहरों के कानों तक आवाज पहुँचाना जरुरी है बम फेंककर असेम्ब्ली में ही खड़े रहे और खुद को अंग्रेज सिपाहियों के हाथों पकड़वाए जबकि उन्हें पता था की उसकी सजा उन्हें मौत भी मिल सकती है फिर भी नहीं घबराये अपनी निडरता और साहस को दिखते रहे और इंकलाब जिंदाबादऔर सम्रजायवाद मुर्दाबाद नारे लगाते रहे इसके साथ ही अपने साथ लाये वो सारी पर्चे हवा में उछाल दिए , गाँधी जी विचारों से प्रभावित होने के कारण वे अहिंसावादी को मानते थे। असेम्बली में बम फेंककर लोगों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाना नहीं चाहते थे इसलिए असेम्ब्ली में जाने बाद उन्होंने पहले खली जगह को ढूंढा जिससे किसी को कोई हानि नहीं पहुंचे और low intensity का बम बनाया जिससे पुरे हॉल में धुंआ से भर गया। उन्होंने यह भी की मुझे सजा के तौर पर गोली मार दीजिये एक बार नहीं कई बार कहे लेकिन अंग्रेजो ने गोली मारने के बजाय उन्हें जेल में डाल दिए। भगत सिंह एवं उनके साथियों को थाने में ट्रायल के आधार पर रखा गया था जिसे उन्हें राजनायिक के रूप साड़ी सुविधाएँ दी जा रही थी जैसेअच्छे भोजन, अखबार आदि परन्तु दोषी ठहराए जाने के बाद उनके सुविधाएँ ले ली गयी और उन्हेंआम कैदी रूप में जेल डाल रखा गया उन्हें पंजाब के मियांवली जेल में रखा गया एवं उनके साथियों को लाहौर के जेल में रखा गया। राजनितिक कैदी होने के नाते उन्होंने अखबार एवं अच्छे भोजन की मांग की परन्तु इंकार कर दिया गया तो इसके लिए उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी और जो 64 दिन था उनके साथी यतीन्द्रनाथ नाथ इसी बीच भूख से कमजोरहो जो जाने केउनकी हालत ख़राब हो गया इसलिए वहां के सिपाहियों ने जबरदस्ती पाइप से दूध पहुँचाया तबियत और गयीइलाज होने के बावजूद भी उन्हें बचा नहीं पाए और वे अपना प्राण त्याग दिए उनकी भूख हड़ताल ख़त्म हो गयी। जब जज का अंतिम निर्णय आया की बम चोट पहुँचाने के इरादे से नहीं फेंका गया था तो बटुकेश्वर दत्त को रिहा कर दिया गया परन्तु राजगुरु और भगत सिंह को कल्ला पानी की सजा हुयी और अंतिम में उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। जब उनकी माँ जेल में मिलने आयी तो वह जोर जोर से हंस रहे थे यह देख सब दांग थे की उन्हें मौत से डर क्यों नहीं लग रहा है, फांसी देने से पहले जब उनकी वजन करवाया गया तब उनका वजन बढ़ चूका था जो सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात थी की इन्होने करीब 116 का उपवास रखा है फिर भी इनका वजन कैसे बढ़ गया? अपने समय में लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा पूछा गया तो उन्होंने कहा की मै लेनिन की जीवनी को पढ़ कर ख़त्म करना चाहता हूँ इसके मुझे कुछ समय चाहिए और जीवनी पढ़कर ख़त्म किया जब सिपाही उन्हें लेने के लिए आये तब भगत सिंह कहते रुको एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिलने दो और फिर उन्होंने किताब को हवा में उछाल कर चल दिए।
भगत सिंह,शिवराम राजगुरु एवं सुखदेव को23 मार्च 1931 ई को फांसी हुयी। इन वीर सपूतों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला जेपी सांडर्स की हत्या करके लिया जिसके बदले में इन्हे फांसी की सजा हुयी इन्होने हँसते -हँसते फाँसी को गले लगा लिए। इन्होने न कभी अपने बारे में न तो परिवार के बारे में उनके न होने के परिवार का क्या होगा बल्कि उन्हें यदि चिंता थी इस बात की अंग्रेजों को देश से कैसे निकले और इस देश की जनता को गुलामी से मुक्त करवाएं।
भगत सिंह के कुछ महत्त्वपूर्ण नारे जो इस देश के जनता के लिए हमेश प्रेरणा स्रोत रूप में जाना जाता है :—–
# इंकलाब जिंदाबाद
# साम्राज्यवाद का नाश हो।
# राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आज़ाद है।
# ज़रूरी नहीं था की क्रांति में अभिशप्त संघर्ष शामिल हो, यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था।
# बम और पिस्तौल क्रांति नहीं लाते, क्रान्ति की तलवार विचारों के धार बढ़ाने वाले पत्थर पर रगड़ी जाती है।
# क्रांति मानव जाति का एक अपरिहार्य अधिकार है।
# स्वतंत्रता सभी का एक कभी न ख़त्म होने वाला जन्म-सिद्ध अधिकार है। श्रम समाज का वास्तविक निर्वाहक है।
# आप मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, परन्तु मेरी आत्मा और विचारों को कभी मार नहीं सकते।
# निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार ये क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।
# मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है उससे मुझे मतलब है।
# प्रेमी, पागल, और कवी एक ही चीज से बने होते हैं।