ब्रिटेन का डॉक्टर था। चैरिटी के चक्कर में प्रैक्टिस करने इंडिया आया था। किस्मत खराब थी, गाँव के हस्पताल में ड्यूटी लग गयी।
बड़ी शिद्दत से बालक ने व्याकरणिक हिंदी सीखी।
लेकिन यहाँ बीमारियों के सिम्पटम्स अजीब थे।
किसी का कुछ गुड़गुड़ाता था,
किसी का कुछ चरचराता और परपराता था।
भभाने, सनसनाने, हवा हो जाने जैसे शब्द थे जो फादर कामिल बुल्के की डिक्शनरी से भी बाहर की चीज़ थे।
वापस जाना चाहता था लेकिन वीज़ा तिलचट्टा खा गया और पासपोर्ट चूहा चबा गया।
डॉक्टर साढ़े सत्तरह दिन से कोमा में था।
*होश में आने पर बार बार कह रहा है-
कपरा टनक रहा है,
मथवा सनक रहा है।
छतिया परपरा रही है,
गोड़वा फाट रहा है।
अँखिया भभा रही है,
कुछ नहीं लउकता,
सब धुंधूर देखाई देता है।*