Samas in Hindi | हिंदी में समास को विस्तार से समझें

हल्लो दोस्तों, आज के आलेख में हम हिंदी व्याकरण के एक मजेदार और महत्त्वूर्ण टॉपिक ‘Samas in Hindi | हिंदी में समास’ को पढ़ेंगे। समास आप सबके लिए इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है की चाहे आप स्कूल, कॉलेज की परीक्षाएं दे रहें हों या फिर कोई प्रतियोगिता परीक्षाएं ‘Samas in Hindi | हिंदी में समास’ टॉपिक से हमेशा प्रश्न आता रहा है और अक्सर विद्यार्थियों को परेशान भी किया है।

इसलिए इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए हम Samas in Hindi | हिंदी में समास’ टॉपिक पर विस्तार से चर्चा करेंगे। इतना ही नहीं समास के अंतर्गत कई महत्त्पूर्ण बिंदु भी हैं जैसे — समास का अर्थ, परिभाषा , भेद , समास विग्रह किसे कहते है?, समास को कैसे पहचानें आदि। इन सब बिंदुओं पर भी हम अपनी गहरी समझ बनायेगें।

समास का अर्थ | Meaning of Samas

Samas in Hindi | हिंदी में समास को सम्पूर्ण रूप से जानने के लिए सर्वप्रथम हमें समास का अर्थ को जानना जरुरी है। यदि आप समास की बनावट को देखें तो समास दो शब्दों से मिलकर बना है :- सम + आस जिसमें से सम का अर्थ है – समीप और आस का अर्थ – बैठना।

अब संरचना या बनावट के आधार पर आप खुद बता सकते हैं कि दो या दो से अधिक शब्द या पद को जब एक साथ बिना विभक्ति चिह्न, योजक पदों व् अव्यय पदों को हटाकर नए पद का सृजन किया जाता है तब वह प्रक्रिया समास कहलाता है।

यदि आप दूसरे शब्दों में समझें तो समास जिसका शाब्दिक अर्थ होता है – संक्ष्प्तीकरण या संक्षिप्त। अर्थात व्याकरण की ऐसी प्रक्रिया जिसमें दो या दो से अधिक शब्दों के योग से संक्षिप्त, स्वतंत्र एवं नवीन शब्द का निर्माण हो वह समास कहलाता है। जहां समास का पर्यायवाची संक्षिप्त या संक्षिप्तीकरण है वहीँ समास शब्द का विलोम शब्द ‘व्यास’ होता है।

समास की परिभाषा | Definition of Samas

जब दो या दो से अधिक शब्दों के मध्य से मात्राओं, विभक्तियों, अथवा योजक पदों या अव्यय पदों में से किसी को भी जब आप मध्य के शब्दों से लोप कर देते हैं और जिससे एक नवीन व् स्वतंत्र शब्द का निर्माण हो जाता है तब उसे सामस कहते हैं। तथा नवनिर्मित शब्द ही सामासिक पद कहलाता है।
समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को पूर्व पद कहते हैं तथा दूसरे पद को उत्तर पद कहते हैं। जब यह दोनों पद आपस में मिलते हैं तो वह समस्त पद अथवा समासिक शब्द कहलाता है।
जैसे :- राजा का पुत्र = राजपुत्र
विद्या का आलय= विद्यालय
माता और पिता = माता – पिता
हिंदी के सुप्रसिध्द वैयाकरण कामता प्रसाद गुरु के अनुसार :– “दो या दो से शदों (पदों ) का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप पर उन दो या दो से अधिक शब्दों के योग से जो एक स्वतंत्र शब्द बनता है उसे सामासिक शब्द कहते हैं और उन दो या दो से अधिक शब्दों का संयोग समास कहलाता है।”

समास विग्रह |Samas vigrah

सामासिक पद अथवा समस्त पद को अलग – अलग करके लिखने की विधि को ही समास विग्रह कहा जाता है। समास में कम से कम दो पदों का होना जरुरी है। जिसमें से पहले पद को पूर्व पद और दूसरे पद को उत्तर पद कहा जाता है। तथा पूर्व पद और उत्तर पद के योग से बने शब्द को ही समस्त पद अथवा सामासिक पद कहा जाता है।
जैसे :- नीलगगन = नीला है जो गगन
देशभक्ति = देश के लिए भक्ति
चौराहा = चार राहों का समूह

समास के भेद | Types of Samas

A.प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद | Praypg ki Drishti se Samas ke Bhed

A.(i) संयोगमूलक समास

संयोगमूलक समास जिसे आप दूसरे शब्दों में संज्ञा समास भी कह सकते हैं क्योंकि आप तो जानते ही हैं कि समास में दो पद होता है और यदि दोनों पदों में संज्ञा ही है तब दोनों संज्ञाओं के संयोग से बने पद संज्ञा समास कहलाता है। जैसे :- लड़का – लड़की , बेटा – बेटी , माता – पिता आदि।
द्वंद्व समास की सहायता से आप इसे और बढियाँ से समझ सकते हैं। यदि आप द्वंद्व समास समझ गए तो संज्ञा समास भी समझ जायेंगें क्योंकि इन दोनों में कोई अंतर ही नहीं है।

A.(ii) आश्रयमूलक समास:-

आश्रय मूलक समास जिसे विशेषण समास भी कहा जाता है क्योंकि इस समास का अर्थ विशेष पर ही निर्भर रहता है। यदि हम देखें तो आश्रय मूलक समास का सम्बन्ध कर्मधारय समास से मिलता है क्योंकि विशेषण – विशेष्य की बात इसी में किया जाता है।

कर्मधारय जिसका अर्थ होता है – कर्म अथवा वृत्ति को धारण करने वाला। जिसका प्रथम पद विशेषण होता है परन्तु उसका दूसरा पद ही अर्थ की दृष्टि से बलवान होता है। आप देख सकते हैं की कर्मधारय समास चार पदों द्वारा सम्पन्न होता है :- (i) विशेषण – विशेष्य (ii) विशेष्य-विशेषण (iii) विशेषण-विशेषण (iv) विशेष्य -विशेष्य

आप इस आलेख में निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से आश्रय मूलक समास को समझ सकते हैं :-
(क) जहाँ पूर्वपद विशेषण हो(अर्थात जब पहला पद संज्ञा या सर्वनाम का विशेषता बताये ) ; यथा- नीलकमल, विशाल वृक्ष , मीठा फल आदि
(ख) जहाँ उत्तरपद विशेषण हो (आप इसे समझ सकते हैं कि जिसके लिए अर्थ रूढ़ हो गया हो ) ; यथा- लम्बोदर, दसानन ,चक्रधारी आदि ।
(ग़) जहाँ दोनों पद विशेषण हों; यथा- दया – भाव , नीला -पीला , लाल – काला आदि।
(घ) जहाँ दोनों पद विशेष्य हों (अर्थात दोनों पद संज्ञा या सर्वनाम होगा ); यथा- प्रधानाचार्य, दही बड़ा , मौलवीसाहब, राजाबहादुर आदि ।

A. (iii) वर्णन मूलक समास:- वर्णन मूलक समास को अव्ययीभाव समास भी कहा जाता है क्योंकि इसका प्रथम पद अव्यय होता है तथा दूसरा पद संज्ञा होता है। वर्णन मूलक समास के अंतर्गत ही बहुब्रीहि समास भी आता है। उदाहरण स्वरुप :- भरपेट, हाथों- हाथ, प्रतिदिन आदि।

B. पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण-

चूँकि आप उपर्युक्त अर्थ और परिभाषा के आधार पर समझ ही चुके हैं की पदों के योग से ही समास बनता है जिसमें दो पद होता है परन्तु उनमें से किसी एक पद का ही अर्थ प्रमुख होता है। पद की प्रधानता के आधार पर आप समास के चार भेद को देख सकते हैं निम्नलिखित है :–
(1) प्रथम पद / पूर्वपद प्रधान – अव्ययी भाव समास
(2) दूसरा पद / उत्तरपद प्रधान – तत्पुरुष समास, कर्मधारय समास, द्विगु समास
(3) जब दोनों ही पद प्रधान हों – द्वंद्व समास
(4) जब दोनों ही पद अप्रधान हों – बहुव्रीहि समास (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)

विभिन्न विद्वानों ने समास के वर्गीकरण करने के लिए अलग – अलग मत दिए हैं जिनमें से सर्वमान्य मत के अनुसार समास के छः भेद माना गया है जो निम्नलिखित है :–
(1) अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
(2) कर्मधारय समास (Determinative Compound)
(3) तत्पुरुष समास (Appositional Compound) कर्मधारय समास
(4) द्विगु समास (Numeral Compound)
(5) द्वंद्व समास (Copulative Compound)
(6) बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)

B. 1. अव्ययी भाव समास | Avyayibhav Samas

वैसा समास जिसका प्रथम पद अव्यय ( अर्थात अविकारी हों ) अथवा प्रथम पद प्रधान हों तथा दूसरा गौण हों वह अव्ययीभाव समास कहलाता है।
इसे आप दूसरे शब्दों में इस प्रकार से समझ सकते हैं कि जब किसी शब्द में उपसर्ग जुड़ा हों अथवा शब्दों की आवृति हो रही हों तब वे शब्द जुड़कर अव्यय के रूप में बनेगा और उसमें लिंग, वचन, कारक, काल आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। उदाहरण स्वरूप :–
यथा शक्ति :- शक्ति के अनुसार, आजीवन :- जीवन भर, अनुरूप :- रूप के योग्य, निर्विवाद :- बिना विवाद के भरपेट :- पेट भरकर, बींचों – बीच :- ठीक बीच में आदि। उपर्युक्त उदाहरण में , निर् एवं अनु उपसर्ग है।

B.2. तत्पुरुष समास | Tatpurush Samas

वैसा समास जिसका जिसका दूसरा पद प्रधान तथा प्रथम गौण रहे इसके साथ ही साथ कारक चिह्न अथवा विभक्ति चिह्न का लोप हों जाए तब उसे तत्पुरुष समास कहा जाता है।

यथा :- मूर्ति को बनानेवाला – मूर्तिकार, देश को धोख देने वाला – देशद्रोही, कल को जितने वाला – कालजयी, रचना करने वाला – रचनाकर आदि।

विभिन्न व्याकरण ग्रंथों में तत्पुरुष समास के भेद को अलग अलग दिखाया है परन्तु मूल व्याकरण एवं संस्कृत व्याकरण में दो भेद माना गया है जो निम्नलिखित है :- व्याधिकरण तत्पुरुष एवं समानाधिकरण तत्पुरुष।

व्यधिकरण तत्पुरुष समास | Vyadhikaran Tatpurush

व्यधिकरण जो दो शब्दों से मिलकर बना है – वि + अधिकरण। वि जिसका अर्थ है – विषम तथा अधिकरण का अर्थ है विभक्ति अर्थात विभिन्न विभक्तियों से मिलकर बना समास ही व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहलाता है।

दूसरे शब्दों में समास का विग्रह करते समय जब प्रथम पद एवं उत्तर पद दोनों में अलग – अलग परसर्गों (कारक चिह्न / विभक्तियों ) का प्रयोग किया जाये तब वह व्यधिकरण तत्पुरुष समास कहलाता है। इसे ही मूल तत्पुरुष समास भी कहा जाता है।

परसर्गों अथवा कारक चिह्नों के अनुसार व्याधिकरण तत्पुरुष समास के छह भेद माना जाता है जिसमे कर्ता कारक एवं सम्बोधन कारक को शामिल नहीं किया गया है। क्योंकि व्यक्तियों के नाम व् क्रम अनुसार विभक्त किया गया है ; यथा –
कर्म तत्पुरुष समास | Karam Tatpurush
करण तत्पुरुष समास | Karan Tatpurush
सम्प्रदान तत्पुरुष समास | Sampradan Tatpurush
अपादान तत्पुरुष समास | Apadan Tatpurush
सम्बंध तत्पुरुष समास | Sambandh Tatpurush
अधिकरण तत्पुरुष समास | Adhikaran Tatpurush

कर्म तत्पुरुष समास | Karam Tatpurush

वैसे तत्पुरुष समास जिसके सामासिक पद से कर्म कारक के विभक्ति चिह्न ( को ) का लोप हो जाए तो उसे कर्म तत्पुरुष समास कहा जाता है। तथा इसे द्वितीय तत्पुरुष भी कहा जाता है।
जैसे :- पॉकेट को मारने वाला = पाकेटमार, रचना को करनेवाला = रचयिता , मूर्ति बनने वाला = मूर्तिकार, चिड़िया को मरने वाला = चिड़िया मार आदि।

करण तत्पुरुष समास | Karan Tatpurush

वैसे तत्पुरुष समास जिसके सामासिक पदों से करण कारक के विभक्ति चिह्न ( से ,के द्वारा ) का लोप हो जाए लोप जाए उसे करण तत्पुरुष समास कहा जाता है तथा यहाँ ‘से’ का अर्थ जुड़े रहने से लगाया जाता है। इसे तृतीया तत्पुरुष समास भी कहा जाता है।
उदाहरण स्वरूप : गुण से युक्त = गुणयुक्त, रेखाओं से अंकित = रेखांकित, शोक से आकुल = शोकाकुल आदि।

सम्प्रदान तत्पुरुष समास | Sampradan Tatpurush

जिस तत्पुरुष समास के समासिक पदों से सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिह्नों ( के लिए ) का लोप हो जाता है उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहा जाता है। इसे चतुर्थ तत्पुरुष समास कहा जाता है।
जैसे :- विद्या के लिए आलय = विद्यालय, रसोई के लिए घर = रसोईघर, पूजा के लिए घर = पूजा घर आदि।

अपादान तत्पुरुष समास | Apadan Tatpurush

जिस तत्पुरुष समास के समासिक पदों से अपदान कारक के विभक्ति चिह्नों (से ) का लोप हो जाता है उसे आपदाना तत्पुरुष समास कहा जाता है। यहाँ ‘से’ का अर्थ विलगाव से लगाया जाता है। इसे पंचम तत्पुरुष समास कहा जाता है।
जैसे :- रोग से मुक्त = रोगमुक्त, ऋण से मुक्त = ऋण मुक्त , लोक से इत्तर = लोकोत्तर आदि।

सम्बंध तत्पुरुष समास | Sambandh Tatpurush

जिस तत्पुरुष समास के समासिक पदों से सम्बन्ध कारक के विभक्ति चिह्नों (का , के , की ) का लोप हो जाता है अथवा जिसके प्रथम पद में सम्बन्ध कारक की विभक्ति चिह्न हो उसे सम्बन्ध तत्पुरुष समास कहा जाता है। इसे षष्ठी तत्पुरुष समास भी कहा जाता है।
जैसे :- रोग से मुक्त = रोगमुक्त, ऋण से मुक्त = ऋण मुक्त , लोक से इत्तर = लोकोत्तर आदि।

अधिकरण तत्पुरुष समास | Adhikaran Tatpurush

जिस तत्पुरुष समास के समासिक पदों से अधिकरण कारक के विभक्ति चिह्नों ( में , पर ) का लोप हो जाता है अथवा जिसके प्रथम पद में अधिकरण कारक की विभक्ति चिह्न हो उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। इसे सप्तमी तत्पुरुष समास भी कहा जाता है।
जैसे :- ध्यान में मग्न = ध्यान मग्न , जल में मग्न = जलमग्न , कला में प्रवीण = कलाप्रवीण आदि।

समानाधिकरण तत्पुरुष | Samaanaadhiksrn Tatpurush

समानाधिकरण जो शब्दों से मिलकर बना है – समान + अधिकरण अर्थात एक जैसे अथवा समान विभक्ति वाले तत्पुरुष समास को समानधिकरण तत्पुरुष समास कहा जाता है। इसे कर्मधारय समास तथा कर्ता तत्पुरुष समास भी कहा जाता है .

B.3. कर्मधारय समास | Karmadhaarya Samas

कर्मधारय जिसका अर्थ होता है – कर्म अथवा वृत्ति को धारण करने वाला। जिसका प्रथम पद गौण होता है परन्तु उसका दूसरा पद अर्थ की दृष्टि से बलवान होता है।

दूसरे शब्दों में जिस समास के प्रथम पद विशेषण व् उपमान एवं द्वितीय / उत्तर पद विशेष्य व् उपमय अथवा विशेषण – विशेष्य व् उपमान – उपमेय के सम्बन्ध से सामासिक पद का निर्माण करे। तथा समास का विग्रह करने पर दोनों ही पदों में एक जैसी विभक्ति का प्रयोग हो।

आप देख सकते हैं की कर्मधारय समास चार पदों द्वारा सम्पन्न होता है :-
(i) विशेषण – विशेष्य :- काला सांप -काला है जो सांप, महाकाव्य – महान है जो काव्य, दीन ब्राह्मण – गरीब है जो ब्राह्मण आदि।
(ii) विशेष्य-विशेषण :– श्यामसुंदर – श्याम हैं जो सुन्दर, राममनोहर – राम हैं जो मनोहर, कुमारी – कंवारी है जो लड़की आदि।
(iii) विशेषण-विशेषण :– सुख – दुःख = सुख और दुःख , भला – बुरा = भला और बुरा, लाल- सफ़ेद = लाल और सफेद आदि।
(iv) विशेष्य -विशेष्य :– आम्र वृक्ष = आम हैं जो वृक्ष, राजपुत्र = राजा का है जो पुत्र, रामनारायण = राम है जो नारायण आदि।

B. 4. द्विगु समास | Dvigu Samas

वैसे समास जिसका समासिक पद का प्रथम पद व् पूर्व पद संख्या वाचक विशेषण का बोध कराता है एवं उत्तर पद संज्ञा तथा दोनों पद मिलकर जब एक समूह अथवा समाहार का बोध कराये तब उसे द्विगु समास कहा जाता है।
जैसे :- चार राहों का समूह / समाहार = चौराहा, तीन वेणियों का समूह = त्रिवेणी, नौ रत्नों का समूह / समाहार = नौरत्न आदि।

B. 5. द्वंद्व समास | Dvandav Samas

वैसे समास जिसका दोनों पद ( पूर्व पद और उत्तर पद ) प्रधान हो तथा समास विग्रह करने के लिए और , या , अथवा आदि संयोजक चिह्न लगाया जाए तब द्वंद्व समास कहा जाता है। जैसे :- माता – पिता = माता और पिता , भाई – बहन = भाई और बहन ,सुख और दुःख = सुख – दुःख आदि।

B. 6. बहुब्रीहि समास | Bahubrihi Samas

से समास जिसके समासिक पद के दोनों पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं होता है बल्कि दोनों पदों के संयोग से बने तीसरा पद किसी तीसरे एवं रूढ़ अर्थ की ओर इंगित करता है। समस्त पद का समास विग्रह करने के लिए जिसका व् जिसके शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे :- नीलकंठ= नीला है जिसका कंठ अर्थात भाववान शिव , लम्बोदर = लम्बा है उदार जिसका आदि।

प्र. समास किसे कहते हैं ?

. जब दो या दो से अधिक शब्दों के मध्य से मात्राओं, विभक्तियों, अथवा योजक पदों या अव्यय पदों में से किसी को भी जब आप मध्य के शब्दों से लोप कर देते हैं और जिससे एक नवीन व् स्वतंत्र शब्द का निर्माण हो जाता है तब उसे सामस कहते हैं। तथा नवनिर्मित शब्द ही सामासिक पद कहलाता है।

प्र. सामासिक शब्द अथवा समस्त किसे कहते है ?

. समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को पूर्व पद कहते हैं तथा दूसरे पद को उत्तर पद कहते हैं। जब यह दोनों पद आपस में मिलते हैं तो वह समस्त पद अथवा समासिक शब्द कहलाता है।
जैसे :- राजा का पुत्र = राजपुत्र

प्र. समास विग्रह क्या है ?

उ. सामासिक पद अथवा समस्त पद को अलग – अलग करके लिखने की विधि को ही समास विग्रह कहा जाता है। समास में कम से कम दो पदों का होना जरुरी है। जिसमें से पहले पद को पूर्व पद और दूसरे पद को उत्तर पद कहा जाता है। तथा पूर्व पद और उत्तर पद के योग से बने शब्द को ही समस्त पद अथवा सामासिक पद कहा जाता है।
जैसे :- नीलगगन = नीला है जो गगन
देशभक्ति = देश के लिए भक्ति

प्र. समास के कितने भेद होते हैं?

उ. सामान्य तौर पर समास के छह भेद माना गया है :-
(1) अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
(2) कर्मधारय समास (Determinative Compound)
(3) तत्पुरुष समास (Appositional Compound) कर्मधारय समास
(4) द्विगु समास (Numeral Compound)
(5) द्वंद्व समास (Copulative Compound)
(6) बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)

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