बस एक कोशिश और – मंजिल भी तेरे इन्तजार खड़ी

आसान नहीं यूं ही मंजिल का मिलना |

पर इतना मुश्किल भी नहीं, कोशिश एक और करना ||

माना  कि मुश्किलें  हैं हजार, पर समाधान नहीं ऐसा कभी  कहना ||

 

कहते हैं, हारा वही  जिसने कोशिश ही नहीं की |

और जीता वही जिसने थामा है दामन बस कोशिशों की ||

 

सच है, कुछ ना  कर पाने  के अफसाने हैं  हजार|

और  कर लेने से  हुए हैं  बड़े-बड़े सपने साकार ||

 

किसी के तानों से मत घबरा, मत हो लाचार|

हौंसलों को कर बुलंद और सपनों को दे आकार ||

 

किसी की आलोचनाओं से कोई हार गया, तो कोई संवर गया।

संकल्प अगर कर ले दृढ, समझो तू भी इनसे उबर गया ||

 

आज की आलोचनाओं से तू भी कल की प्रेरणा बन।

कर ले अपने हौसलों को बुलंद और भर ले सपनों की उड़ान ||

 

न इसकी सुन और न उसकी देख, तू बस खुद के  सपनों को देख|

बस  कोशिश  एक और कर, खड़ी है तेरी मंजिल भी देख ||

…… एक कोशिश और सही, तू बस आगे और आगे देख||


>>> मौलिक रचना- 
कान्ति कुमारी, जे आर एफ शोध छात्रा

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